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________________ आशा के दो दीप जलाएं मनुष्य का जीवन प्रकृति की ओर से मिला हुआ महान् वरदान है। यदि हम प्रसन्न और विश्वास भरे हृदय के साथ जीवन को निहारें तो जीवन हमें स्वर्ग का पवित्र हिस्सा नजर आता है। वहीं यदि खिन्न और विपन्न हृदय से जीवन को निहारा जाय तो जीवन नरक का नमूना नजर आता है। जीवन को स्वर्ग या नरक बनाना मनुष्य का खुद का फैसला है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने स्वर्ग जैसे जीवन को भी नरक बना लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नरक जैसे जीवन को स्वर्ग बना लिया करते हैं। तीन और तीन छः भी हो सकते हैं, नौ भी हो सकते हैं, शून्य भी हो सकते हैं और तैंतीस भी हो सकते हैं। यह मनुष्य की व्यवस्था पर निर्भर है कि वह अपने जीवन के अंकों को दुगुना, तिगुना या शून्य का परिणाम देता है अथवा तैंतीस गुमा करता है। अगर कुदरत ने किसी को शक्ति प्रदान की है तो वह उसका उपयोग निर्माण या विध्वंस में करे यह उसी पर निर्भर है। प्रकृति-प्रदत्त वाणी का उपयोग मनुष्य सुमधुर वचनों के लिए करता है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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