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________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा पकड़ा जाता है। आँख पर नियंत्रण न रहा तो आग में जला। कान पर नियंत्रण न रहा तो पकड़ा गया। नाक पर नियंत्रण न रहा तो भंवरा कमल की पंखुड़ियों में कैद हो गया। जिह्वा पर नियंत्रण न रहा तो मछली कांटे में फँस गई। शरीर पर नियंत्रण न रहा तो हाथी हथिनी के पीछे दौड़ता रहा और शिकारी ने हाथी को गड्ढे में गिरा लिया। एक-एक इन्द्रिय की लोलुपता किसी जानवर के लिए आत्मघातक बन सकती है तो हम मनुष्य जो पाँचों ही इन्द्रियों के प्रति लोलुप हैं, उनका क्या हस्र होगा ? तो बिल्ली अपने दाँतों से चूहा भी पकड़ती है और अपने बच्चे भी, लेकिन दोनों को पकड़ने में कितना फर्क है। एक में हिंसा उमड़ती है और दूसरे में वात्सल्य ! मनुष्य मन की स्थिति तो ऐसी हो गई है कि वह भौतिक रूप से समृद्ध हो गया है लेकिन उसके मन और विचारों में अत्यधिक गिरावट आ गई है। जो नारी के प्रति इतनी लोलुपता रखता है कि जहाँ भी वह दिखे उसे भोगने की लालसा जागृत हो जाती है। यह तो लोक-लाज है कि व्यक्ति व्यक्ति को निभा रहा है अन्यथा मनुष्य की गिरावट का कोई अन्त ही नहीं होता । वह अच्छी बातें सुनता जरूर है, लेकिन जैसे ही अपनी विचारधाराओं में घिरता है, अपने घेरे में आता है तो फिर वैसा का वैसा हो जाता है। हज कर आते हो, हरिद्वार में डुबकी भी लगा आते हो, लेकिन मन का पशु जरा भी नहीं बदलता । जब तक मन की पशुता का त्याग न हो, कोई भी गंगा किसी को भी निर्मल नहीं करती। गंगा में शरीर को नहीं बल्कि मन की मलिनता को डुबाने की कोशिश करो। अपने आप पर नियंत्रण करने पर ही कुछ शुद्धि की अवस्था प्राप्त होती है, तब व्यक्ति तीसरे चरण पर अपने कदम रखता है- जो है कपोत लेश्या । 109 अपने मन और चित्त के साथ इन्साफ़ कीजिए और देखिए कि आपकी कौन-सी लेश्या है और क्या आप उस घेरे से बाहर आ सकते हैं ? कपोत लेश्या का रंग है सलेटी या कबूतरी और इसका लक्षण है चिन्ता । दिन-रात जो आर्त्त और रौद्र ध्यान करते हैं, जो हर वक्त चिन्ता में घिरे रहते हैं, वे कपोत लेश्या के अनुचर होते हैं। उनकी लेश्या उन्हें रात-दिन सुलगाती रहती है और वे चाहकर भी अपने घेरे से बाहर नहीं निकल पाते । चिन्ताओं से वह अपनी चिता जला Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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