SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 113 प्रेम और प्रसन्नता का परिचायक है। आप अपने दिल में गुलाबी रंग का ध्यान धरिये सुबह साँस लें तो गुलाबी साँस लीजिए और अपने आस-पास गुलाब के फूल खिलाइये। आपकी मानसिकता में सहजतया प्रेम-प्रसन्नता के फूल खिलेंगे। अंतिम है शुक्ल लेश्या। इसका रंग है श्वेत अर्थात् पवित्रता और समदर्शिता। सबके प्रति समान दृष्टि-हानि-लाभ, योग-वियोग, जन्म-मरण, जहाँ हर स्थिति में व्यक्ति मन:स्थिति को सहज रखता है, समदर्शी बनाये रखता है, वह स्थिति शुक्ल लेश्या की होती है। क्या बड़ा - क्या छोटा, कौन नौकर/ मालिक, कैसे स्त्री/पुरुष? सबके प्रति जहाँ एक निगाह होती है, समान आदर रहता है, समदृष्टि और जीवनदृष्टि होती है वहाँ शुक्ल लेश्या फलित होती है। यह मन की अत्यन्त ही निर्मलतम और उच्चतम अवस्था है जहाँ व्यक्ति अपने दूषित विचारों के प्रदूषण से स्वयं को मुक्त कर लेता है। क्रूरता मन की निकृष्टतम दशा है, लोलुपता और चिन्ता मन की अवस्थाएँ हैं जो हमें स्वार्थी और तनावग्रस्त बनाती हैं। व्यक्ति के हाथ में है कि वह स्वयं को स्वास्थ्य और शांति प्रदान करे। मन की गिरी हुई अवस्थाएँ ही उसके जीवन का कूड़ा-कर्कट है। जबकि विवेक, सौम्यता और समदर्शिता जीवन को स्वर्ग का सुकून देते हैं। हममें से हर किसी को चाहिए कि वह विवेकपूर्वक जिए। विवेक ही वह शक्ति है जो हमें तमस् से बाहर निकालती है और प्रकाश का रास्ता प्रदान करती है। जीवन में सदाबहार सौम्यता लाएँ। इसी के बलबूते पर हम संसार में स्वर्गिक जीवन जीते हैं और सबके साथ आत्मवत् दृष्टिकोण अपनाते हैं। बेहतर होगा कि हम ऊँच-नीच और गरीब-अमीर का भेद किये बिना सबके प्रति अपना प्रेम लाएँ। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' या ‘सबै भूमि गोपाल की' सबको अपने प्रेम का पात्र बनाएँ। अपनी मानसिकता को क्षुद्र और विकलांग न होने दें। बेहतर नजरिया, बेहतर सोच, बेहतर कार्यशैली - ये ही तो वे सोपान होते हैं जिनसे हमें सफलता की, सार्थकता, श्रेष्ठता की, पूर्णता की मंजिल मिला करती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy