Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 62
________________ पहला अनुशासन : समय का पालन सकते हैं। जब सिकन्दर बीमार पड़ा तो चिकित्सकों ने कहा, 'अब तुम्हें बचाया न जा सकेगा। तुम कल की सुबह देख लो तब भी बहुत है ।' सिकन्दर ने कहा, 'तुम लोग अगर मुझे चौबीस घंटे का जीवन और दे दो तो मैं चाहता हूँ कि मैं मरने से पहले अपनी बूढ़ी माँ से मिल लूँ ।' हकीमों ने कहा, 'सिकन्दर, तुम्हारे जीवन को और न बढ़ाया जा सकेगा। यह हमारे हाथ में नहीं है । ' 55 सिकन्दर ने कहा, 'तुम लोग अगर मेरा चौबीस घंटे का जीवन और बढ़ा दो तो मैं तुम्हें मेरे शरीर के भार जितना सोना दूँगा ।' हकीमों ने कहा, 'यह संभव नहीं है।' बारह घंटे और बढ़ा दो तो मैं तुम्हें पूरे शहर का राजा बना दूँगा ।' 'संभव नहीं है सिकन्दर ! तुम यह समझते क्यों नहीं हो कि जीवन को बढ़ाना और घटाना आदमी के बस की बात नहीं है।' 'तुम मेरे जीवन को एक घंटा और बढ़ा तो मैं तुम्हें आधा साम्राज्य दे डालूँगा ।' सांसें उखड़ रही थीं सिकन्दर की। हकीमों ने कहा, 'सिकन्दर, तुम आधा राज्य क्या पूरे विश्व का साम्राज्य भी दे डालो तब भी समय ने अगर मौत का रूप ले लिया है तो उस रूप को कभी भी टाला न जा सकेगा।' जीवन को बढ़ाया नहीं जा सकता। जीवन तो हर किसी का तय है कि उसे कितना जीना है। हम अपने जीवन का अधिक से अधिक जितना निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जरूर निकालें। जीवन के अंतिम क्षण तक भी जीवन को पूरी तरह से जिएँ। हम जीवन की अंतिम बूँद भी पूरी तरह से जिएँ भले ही हमारे सारे बाल पक गए हैं। अंतिम साँस निकल रही है तब भी हम उसे पूरे जीवट के साथ जी जाएँ। हम समय का जितना उपयोग करेंगे, जीवन का उतना ही उपयोग होगा । हम समय से निरपेक्ष होते जा रहे हैं और जीवन से भी उतने ही निरपेक्ष होते जा रहे हैं । रात-दिन केवल गप्पों को हाँकने में लगे हैं। हमें नहीं पता कि हम गप्पों को हाँक-हाँककर क्या हाँक रहे हैं ? लगता है कि हम समय काट रहे हैं। अरे भले मानुष ! हम समय को नहीं काट रहे हैं अपितु समय हमें काट रहा है । हम समय को क्या काटेंगे। हम लोग सोचते हैं समय 'पास' कर रहे हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122