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पहला अनुशासन : समय का पालन
जाओ किसी पंडित के पास। उसे कहें, ‘पंडित जी, मुझे गुस्सा करना है, जरा अच्छा-सा मुहूर्त निकाल दीजिए।'
प्रेम तो 'काल-योग' में भी करोगे तो वह अमृत है और गुस्सा अमृत योग में भी करोगे, तब भी जहर है। अशुभ को कल, कल, कल पर टालते चले जाएँ। शुभ को आज, अभी करने की प्रवृत्ति बनाएँ, इसी क्षण। सत्कर्म की सजगता और भावना अपने भीतर संजोएँ। कल पर टालने का कोई अर्थ नहीं होता। ऐसा हुआ; एक महिला के पेट में अस्सी वर्ष का गर्भ ठहरा हुआ था। वह सौ वर्ष की हो गई। जितनी बार उसे पीड़ा होती, वह अस्पताल में जाती, मगर गर्भ में रहने वाले दोनों बच्चे बाहर ही नहीं निकलते। जैसे ही डॉक्टर उन्हें बाहर निकालने लगा तो दोनों एक दूसरे से कहते, ‘पहले आप पधारो', दूसरा कहता नहीं, ‘पहले आप।'
पहले आप, पहले आप के चक्कर में अस्सी साल गुजर गए। अस्सी साल पहले निकल जाते तो उनकी उम्र अस्सी वर्ष की होती मगर अब वे अस्सी वर्ष के बच्चे हैं। बाल सफेद होने से कोई आदमी बड़ा नहीं हो जाता है। बालों के पकने से परिपक्वता नहीं आती अपितु जीवन के पकने से जीवन में परिपक्वता आया करती है।
जो व्यक्ति समय का मूल्य समझ सकता हो तो वह जीवन के साथ जरूर इस मूल्य को जोड़े। आप अपने काम को बिल्कुल समय के अनुसार व्यवस्थित करके चलें तो समय खुद व्यवस्था देकर चलता है। हर कार्य समय-नियोजित हो। खाना-पीना, उठना-बैठना, सोना-जागना सब कुछ समय-नियोजित हो। समय पर जगें, समय पर सोएँ, समय पर घर पहँचे। घर पर नियम बना लें कि सायं का भोजन सब लोग साथ बैठकर एक साथ करेंगे।
मेरे एक परिचित व्यक्ति हैं। मुझ पर वे बहुत स्नेह रखते हैं। उन्होंने अपने घर का एक उसूल बना रखा है कि 12.30 बजते ही सबके सब घर पहुँचेंगे
और 12.35 होते ही घर के सभी सदस्य भोजन करने बैठेंगे। साथ बैठकर खाने का मजा कुछ अलग ही होता है। समय पर सारे लोग एक साथ बैठो, खाओ
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