Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 107
________________ 100 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए विचारों का परिणाम है।' व्यक्ति के विचार ही शब्द बनते हैं, शब्द ही एक्शन बनते हैं, उसके एक्शन ही आदत बनती है, आदतें ही चरित्र बनती हैं और चरित्र ही व्यवहार और कर्म होता है। विचारों के परिणाम ही जीवन में आते हैं। अगर आप शुभ विचारों से गुजर रहे हैं तो आप स्वर्ग के रास्ते की ओर बढ़ते हैं और यदि अशुभ विचारों से गुजर रहे हैं तो नरक की दहलीज पर खड़े हैं। मरने के बाद क्या स्वर्ग और नरक ? स्वर्ग और नरक तो छाया की तरह साथ ही चलते हैं जैसे दायाँ-बायाँ साथ चलता है। अपने मन को देखें और पहचानें कि कहीं अशुभ, वैर-वैमनस्य, राग-द्वेषजनित विचार साथ तो नहीं चल रहे हैं ? वस्तुत: ये ही नरक का द्वार लिये चलते हैं। इसके विपरीत प्रेम और शांति, मैत्री और करुणा की भावदशाएँ सदा स्वर्ग की यात्रा कराती हैं। मेरे देखे, व्यक्ति दिन भर में पचासों बार स्वर्ग-नरक की यात्रा कर लेता है। तुमने क्रोध किया तो तुम नरक में चले गये, कल तुमने दुश्मन को क्षमा कर दिया तो तुम स्वर्ग की सैर कर आये। इसी तरह व्यक्ति अपनी मानसिकता में स्वर्ग-नरक के बीच पैण्डुलम की तरह डोलता है। आज मैं व्यक्ति को उसके मन और विचारों से रूबरू कराना चाहूँगा कि वह किस तरह उनसे घिरा हुआ है। व्यक्ति संसार में किसी मोह-माया से नहीं घिरा है। वह घिरा है तो अपने ओछे और अच्छे विचारों से ही घिरा हुआ है और उनसे निकलना चाहकर भी नहीं निकल पाता। व्यक्ति को अपने जीवन के हर कदम का ज्ञान है फिर भी ऐसा कुछ है जिसके कारण सारा ज्ञान एक ओर रह जाता है और वह अपने ही घेरे में घिरकर रह जाता है। छोटे-छोटे निमित्त भी उन घेरों को प्रभावित करते हैं। जैसे मकड़ी जाला बुनती है किसी दूसरे जीवजन्तु को फँसाने के लिए, लेकिन धीरे-धीरे वह स्वयं उसमें ऐसी फँस जाती है कि उसके लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं रह जाता। मेरे लिए धर्म की पगडंडी या मार्ग जीवन के प्रति जागना है। तुम धर्म के चाहे जितने विधि-विधान सम्पन्न कर लो, लेकिन क्या इससे तुम्हारे घेरे टूटे हैं ? अगर कोई इन घरों में से निकल सकता है तो केवल तब, जब वह अपने मन के विचारों के घेरों को समझे। एक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा जिसका मुझ पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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