Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ 95 है ? उसने क्रोध में भरकर कहा, 'कल तुम्हारे भगवान् को बुला लेना। मैं भी देखता हूँ कि इतनी दूर से तुम्हारे भगवान् यहाँ कैसे पहुँचेंगे? अगर वे यहाँ पहुँच गये तो मैं भी तुम्हारे भगवान् का उपासक बन जाऊँगा और अगर न पहुँचे तो कल के बाद तुम कभी पूजा नहीं करोगी तथा भगवान् का नाम नहीं लोगी।' उसने कहा, 'ससुर जी, सचमुच मैं बुला लूँ ?' 'हाँ, हाँ, तुम बुला लो, लेकिन कल की तारीख में आ जाना चाहिए', ससुर जी ने कहा। बहू पहली बार इतनी प्रसन्न हुई थी। वह घर के पीछे आंगन में गई। वहाँ देखा कि जुही के कुछ फूल खिले हुए थे। उसने उन फूलों को चुना, आसमान की ओर नजर उठाई, भगवान् जिस ओर विहार कर रहे थे, उधर आँखें घुमाईं, फूलों को हृदय से लगाया और आसमान की ओर यह कहते हुए, ‘भगवान् आपकी यह शिष्या चूल सुभद्दा इन जुही के फूलों को देकर यह निमंत्रण भेज रही है कि आप मेरे घर पधारें और इस अभागिन को धन्य करें।' कहते हैं कि भगवान मीलों दूर कहीं प्रवचन कर रहे होते हैं कि चूल सुभद्दा का पिता खड़ा होता है और कहता है, ‘भन्ते ! कल भोजन करने के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। आप कल का भोजन मेरे यहाँ स्वीकार करके मुझे धन्य करें। भगवान ने कहा, 'वत्स, कल के लिए तो मैं निमंत्रण स्वीकार कर चुका हूँ।' 'भगवान, आप यह क्या कह रहे हैं ? अभी तो किसी ने भी आपको निमंत्रण नहीं दिया है, अनुनय-विनय भी नहीं किया है और आप कहते हैं कि आपने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।' चूल सुभद्दा के पिता ने विस्मित होकर पूछा। 'क्या तुम्हें हवाओं में जुही के फूलों की सुगंध नहीं आ रही है ? क्या तुम इन फूलों की खुशबू को महसूस नहीं करते हो जो हवाओं में घुली है। मैंने कल तुम्हारी बेटी के यहाँ जाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है।' भगवान मंद स्मित से बोले। 'भगवान्, आप यह क्या कह रहे हैं ? वे लोग तो नास्तिक हैं। वहाँ आप कैसे जा सकेंगे? आपका अपमान होगा।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122