Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 81
________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए नहीं दे रहा हूँ वरन् इस बात के लिए दे रहा हूँ कि आप मेरे बेटे की ऐसी पिटाई करना कि जिन्दगी में फिर कभी वह किसी को बुरी नजर से न देख सके । ' 74 जिस घर के संस्कार ऐसे होते हैं वही अपने बच्चों को सुधार पाते हैं । हम अपने बच्चों को बिगड़ने के लिए चाहे सौ-सौ इंतजाम देते होंगे, पर अपने बच्चे को सुधारने के लिए कितने इंतजाम कर रहे हैं, जरूरत इस बात की है। अगर हमारा बच्चा बिगड़ रहा है तो हम उसे बचाएँ नहीं । उसे ऐसी शिक्षा दें कि वह भविष्य में कभी गलत रास्ते पर न जा सके। आदमी के स्वभाव पर, उसके चरित्र पर जिस तीसरे बिन्दु का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है वह है टी. वी. और फिल्में। मैं टी.वी. का विरोधक नहीं हूँ। मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का समर्थक हूँ। जिस तरह से विज्ञान का विकास हो रहा है, मनुष्य को विज्ञान के साथ चलना चाहिए । लेकिन उसे इतना विवेक जरूर होना चाहिए कि उसे टी.वी. पर आने वाले कौन से दृश्य और कौन-से धारावाहिक देखने चाहिए और कौन-से नहीं ? अगर सरकार संस्कृति को बचाना चाहती है, तो अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उसे ऐसे कड़े नियम बनाने होंगे कि उसे ऐसे धारावाहिक या फिल्में कतई नहीं दिखायी जानी चाहिए कि जिनसे बच्चों में गलत संस्कार पड़े । जरा कल्पना करें कि सामने दृश्य आ रहा है जिसमें एक अर्ध वस्त्र पहनी हुई महिला नृत्य कर रही है और उसी दृश्य को दादा देख रहा है, दादी देख रही है, बेटा देख रहा है, बेटे की बहू देख रही है, पोता देख रहा है, पोती देख रही है। हम जरा सोचें कि हम घर के जो सदस्य ये दृश्य देख रहे हैं, उन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? तभी कोई गुंडागर्दी का, अपराध का, बलात्कार का दृश्य आता है और दादा, बेटा, पोता उसकी अस्मिता को मिटते हुए, इज्जत को लुटते हुए देख रहे हैं, तो भला उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। फिल्मों ने इंसान को इतना प्रबुद्ध कर दिया है कि हमारा पाँच साल का बच्चा भी भली-भाँति जानता है कि सेक्स क्या होता है, जीवन क्या होता है और पति - पत्नी के सम्बन्ध क्या होते हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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