Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 96
________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ आविष्कार करके सारी दुनिया में मौत का आतंक फैला दिया है। वह मौत का सौदागर था, वह चल बसा। ' नोबल की आँखों में आँसू भर आये कि क्या दुनिया उसे मौत के सौदागर के रूप में याद करेगी क्या आने वाला कल मुझे धिक्कारेगा ? उसका तो जीवन ही बदल गया। उसके बाद उसने जो भी प्रयास किये, वे विश्व शान्ति और विश्व बंधुत्व के प्रयास थे। उसने अपनी सारी सम्पत्ति और धन अपने किसी भी परिजन को नहीं दिया। उसने बैंक में जमा कर दिया और घोषणा कर दी कि उससे होने वाली आय से प्रतिवर्ष उस व्यक्ति को सम्मानित किया जाय जिसने अपना जीवन विश्व में प्रेम और शांति - सद्भावना स्थापित करने के लिए अर्पित किया हो। तब से लेकर आज तक उस शांति दूत के नाम से नोबल पुरस्कार दिया जाता है। - 89 यह धरती उसे सम्मान नहीं देती जो सिकंदर की तरह विश्व में आतंक फैलाये । यह स्टालिन और हिटलर को भी सम्मान नहीं देती । यह नेपोलियन को भी उतना सम्मान न देगी जितना प्रेम, शांति, करुणा और आनंद की राह दिखाने वाले लोगों को देगी। यह तो उन्हें सम्मान देगी जिन्हें हम राम, रहीम, कृष्ण, कबीर, महावीर, मोहम्मद या गाँधी और मंडेला कहते हैं। कोई तुम्हारी राह में कांटे ही क्यों न बिछा दे, तुम अपने प्रेम से उन्हें फूलों में बदलने की शक्ति रखो। वस्तुतः प्रेम ही वह तत्त्व है जिसमें दीन सुदामा का सत्तू कृष्ण द्वारा स्वीकार किया जाता है। प्रेम से अगर शबरी जूठे बेर भी राम को खिलाती है तो राम बहुत आनंद से उन बेरों को खाते हैं । उस शबरी के प्रेम की पराकाष्ठा तो देखो कि वह एक - एक बेर चखती है ताकि भगवान को कहीं खट्टा बेर न चढ़ जाय । यह भी तो प्रेम ही है कि कृष्ण दुर्योधन के पकवान छोड़कर विदुर के यहाँ साग-भाजी खाते हैं। प्रेम की पराकाष्ठा तो यह है कि विदुर की पत्नी केले के छिलके तो कृष्ण को देती है और केले फेंकती जाती है, लेकिन कृष्ण भी प्रेम के वशीभूत होकर छिलके ही खाते चले जाते हैं । 'सबसे ऊँची प्रेम सगाई, दुर्योधन घर मेवा छांडे, शाक विदुर घर खाई ।' यह तो प्रेम ही है जो लग गया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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