Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 89
________________ 82 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए पाउडर लगाएँ लेकिन अपने होठों पर कोई भी रासायनिक पदार्थ न लगाए क्योंकि उसी तत्त्व की अपने पेट में जाने की संभावना बनी रहती है। जब खाना खा लें, अपने हाथ वहाँ पर धोएँ, जहाँ बैठे हैं। खाना खाने के बाद वहीं पर ही हाथ धोएँ। ऐसा नहीं कि हाथ कहीं और जाकर धोएँ। यह अमर्यादा कहलाती है। हम जब भी खाना खाएँ, अपने होठों को बंद करके खाना खाएँ। यों नहीं कि जो दूसरा आदमी हमको देख रहा है, उस आदमी को नज़र लगे कि खाना क्या खा रहा है बल्कि दाँत ऐसे चल रहे हैं जैसे गाय या बकरी के दाँत चल रहे हैं, छी: छी:। अपने होठों को बंद करके कौर खाइये। होठों को बन्द करके भीतर ही भीतर उसको ढंग से चबाइये और निगलिए। जब खाना खा लें तो हाथ धोकर तौलिए से पौंछे। अपनी थाली को वहाँ पर छोड़कर खड़े न हों। हम अपनी थाली को अगर अपने हाथों से धो सकें तो ठीक है। यदि न धो सकें तो कम-से-कम उसे यथा स्थान पर ले जाकर रखें। जब हम दुकान पर जाएँ तो अपने ग्राहकों से मधुर व्यवहार करें। अपने कर्मचारियों से, अपने गुमाश्तों से इतना मधुर बर्ताव करें कि हमारे कर्मचारी भी हमारी शालीनता और सौम्यता पर गर्व कर सकें। हम अपने ग्राहकों से लड़ाईझगड़ा न करें। यह न सोचें कि एक ग्राहक चला गया तो दूसरा आएगा। अगर हमने कोई माल बेच दिया और वह माल उसको घर जाने पर पसंद न आया और वह उसे वापस ले आया, तो उसे ले लें। भले ही एक पाव चीनी लेकर गया, पर लौटकर सवा दो सौ ग्राम लाया, फिर भी हम उसे रख लें। उसे मना न करें, क्योंकि ऐसा करने से ग्राहक के मन में आपके सौम्य व्यवहार की मोहर लगेगी। हमेशा घर पर समय से लौट आइए। रात को ग्यारह-ग्यारह, बारह-बारह बजे तक घर से बाहर न रहें क्योंकि ऐसा करने से आपकी पत्नी या घर के अन्य सदस्यों के मन में संदेह जगेगा। हम समय पर अपने घर लौट आएँ क्योंकि घर वालों को आपकी प्रतीक्षा है। आखिर, हमारी पत्नी भी है, बच्चे भी हैं, घर के और सदस्य भी हैं। उनको हमारा प्रेम चाहिए। घर वालों के साथ भोजन करें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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