Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 74
________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ 67 'ज्यां का जैसा स्वभाव, जासी जीव मूं। . नीम न मीठो होय, सींचो गुड़ घीव सूं।' जिसके जो स्वभाव पड़ गए हैं, वे जाते ही नहीं हैं। जैसे नीम को कोई व्यक्ति गुड़ और घी से भी सींच दे, तब भी नीम तो खारा का खारा ही रहता है। काबा जाओ, काशी जाओ,गंगा में डुबकियाँ लगाओ। दिल का देवालय गंदा, तो फंदा सारा धर्म-कर्म है। चाहे जितनी डुबकियाँ लगाओ और चाहे जितने तीर्थ-धाम कर आओ, पर मन ही अगर गंदा है तो वहाँ जाकर भी तुम अपने जीवन में निर्मलता और पवित्रता का संदेश नहीं ला पाओगे। ऐसा नहीं है कि मरने के बाद उनका स्वभाव छूट जाता होगा। जिन लोगों ने अपने स्वभाव को बदलने के लिए प्रयास ही नहीं किया, वे मर भी जायेंगे, तब भी उसी स्वभाव पर ही अड़े हुए रहेंगे। जब स्वर्ग के दरवाजे पर कोई कबाड़ी पहुँच जाए और स्वर्ग के दरवाजे के भीतर प्रवेश करना चाहे तो संभव है कि देवलोक के चौकीदार उसे भीतर प्रवेश करने से रोक दें और पूछे कि 'तुम्हारे पास ऐसा कौन-सा सर्टिफिकेट है कि तुम स्वर्ग के रास्ते पर आ गए हो।' कबाड़ी कहेगा - 'मैंने जिन्दगी में चाहे जितना कबाड़ा किया हो लेकिन पाँच-दस पैसे का दान भी दिया होगा। मैं उसी के बलबूते पर ही स्वर्ग के राज्य में चला आया हूँ।' चौकीदार अगर सारे बहीखाते देखकर यह कह दे कि 'तुम्हारा तो कहीं कोई जमाखर्च दिख नहीं रहा है। लगता है, तुमने जरूर कहीं कोई कबाड़गिरी करके स्वर्ग के रास्ते को पकड़ लिया होगा।' कबाड़ी ने कहा, 'आपको नहीं पता, आप भीतर जाइए और स्वर्ग के प्रमुख देवता से पूछकर आइए। मैंने जिन्दगी में जरूर कुछ न कुछ किया है, तभी तो मुझे स्वर्ग का रास्ता मिला है।' चौकीदार कबाड़ी की बातों में आ गया और धर्मराज से पूछने के लिए स्वर्ग के साम्राज्य के भीतर गया। वह राजसभा के बीच पहुँचा और कबाड़ी के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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