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पहला अनुशासन: समय का पालन
बहुत होते हैं। जो व्यक्ति एक-एक दिन का सार्थक उपयोग कर रहा है, वह जान रहा है कि एक जीवन में भी कितना क्या किया जा सकता है।
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फालतू की बातों में आप लोग अपना कितना समय बर्बाद कर देते हैं। बैठ गए, बातें कर रहे हैं। अब दो घंटा भी वहाँ से नहीं हटेंगे। जाते हैं कहीं किसी के घर में और बैठ गए गप्पें लगाने। अरे भई, तुम तो फालतू हो, अगला फालतू थोड़े ही है। कहीं भी जाएँ, समय लेकर जाएँ कि मैं आपसे मिलना चाहता हूँ और निर्धारित समय पर पहुँच जाएँ । चार से पाँच बजे का समय लिया और हम उससे ज्यादा बैठ गए तो जरा सोचिए कि अगर उस बेचारे को कहीं जाना भी हो तो वह बार-बार घड़ी देखेगा किन्तु हम उठने का नाम ही नहीं लेते।
समय पर जाएँ। हमारे समय का मूल्य हम समझ सकें तो बेहतर है, पर कम से कम अगले के समय का मूल्य तो अवश्य समझें। लोग जाते हैं और माथा खाने बैठ जाते हैं, लेना न कोई देना । ऐसे-ऐसे सवाल करते हैं जिन सवालों का हमारे जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है । ऐसे सवाल करें जिनसे हमें कोई परिणाम भी मिले। तब ही तो फायदा भी है। नहीं तो हम हमारे में मस्त रहें और अगले को अपने में मस्त रहने दें। वह अपने समय का उपयोग सार्थक कार्यों में करे और हम अपने समय का ।
समय का हर कण बेशकीमती होता है। समय का हर क्षण स्वर्णकण की तरह मूल्यवान होता है। अगर हम समय को यों ही व्यर्थ बिता रहे हैं तो ऐसा करके हम अपने जीवन को यों ही व्यर्थ कर रहे हैं। बीता हुआ समय तो जैसा बीतना था, वैसा बीत गया लेकिन अब हमारे पास समय जो है, उसका तो हम पूरा-पूरा उपयोग कर ही सकते हैं। बीते हुए समय को लौटाना किसी के भी हाथ में नहीं है। जो समय बीत चुका, वह बीत चुका । एक बार कोई देवता रूठ जाए तो रूठा हुआ देवता तो शायद प्रसाद चढ़ाने पर राजी हो सकता है, मगर बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता है। स्वयं जिन्दगी को भी कुर्बान कर देने पर जो लौटकर नहीं आता, उसी का नाम समय है।
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