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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
छोटों से या बच्चों से गलती हो जाती तब भी गुस्सा नहीं आता था क्योंकि अगर बच्चों से या छोटों से गलती नहीं होगी तो किससे होगी? बस, मुझे तो ऐसा लगता है कि जो छोटे हैं उन्हें माफ कर देना चाहिए। उनकी बात पर क्यों ध्यान दें ?' यह थी मेरी माँ की सकारात्मक सोच।
जहाँ दुश्मन को देखकर भी मैत्री-भाव जागृत हो, वहाँ होती है सकारात्मक सोच। राम-रावण के प्रसंग से हम सभी परिचित हैं कि युद्ध में रावण की मृत्यु हो जाने पर जब उसका शव राम के सम्मुख लाया गया तो राम रावण को सम्मान देते हुए खड़े हो गये। खड़े ही नहीं हुए अपितु अपना उत्तरीय भी रावण के शव पर डाल दिया। मुझे राम के जीवन के अनेकानेक प्रसंगों में यह प्रसंग सर्वाधिक प्रिय है। जिस व्यक्ति के जीवन में इतनी सकारात्मकता है कि वह हर प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने चित्त को विचलित नहीं होने देता है, यह राम के जीवन की सर्वोत्तम मंगलकारी प्रेरणा है।
मित्र से प्रेम किया, कोई खास बात नहीं। उसने प्रेम दिया, हमने प्रेम दिया। खास बात यह है कि किसी ने हमें अपमान दिया, फिर भी हमने उसे आत्मीयता प्रदान की। जो खाना आता है, उसे खाया तो कौन-सी खास बात हुई ? जो खाना जीभ को स्वाद नहीं दे रहा है, फिर भी हमने उसे सहजता से स्वीकार कर लिया, यह जो दृष्टि है, उसे ही मैं सकारात्मकता कहता हूँ। इसी में ही सामयिक, समता, समरसता की कसौटी होती है। बुरे आदमी में भी अच्छाई को ढूँढ लेना, गलत और उग्र वातावरण में भी ‘संतुलन' की कीमिया को ढूँढ निकालना, यही है समझदारी की कसौटी।
मेरे देखे, सकारात्मक सोच से निराशा, तनाव, घुटन, अनुत्साह और एक-दूसरे के प्रति रहने वाली दूरियाँ समाप्त हो सकती हैं। इंसान फिर इंसान के करीब आ सके। साथ-साथ चलो, साथ-साथ जियो, साथ-साथ रहो, यह सब केवल कहने के लिए नहीं है। हर इंसान जब एक-दूसरे के करीब आएगा तब यह मंत्र संसार में जीवित हो पाएगा। आप सभी के लिए मेरी सद्भावना है कि आप मिल-जुलकर हँसी-खुशीपूर्वक रहें, एक-दूसरे के काम आयें और अपनी सोच को सकारात्मक बनायें।
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