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पहला अनुशासन : समय का पालन
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सब बदल रहा है, सब परिवर्तन हो रहा है। महल खंडहर हो रहे हैं, खंडहर महल बन रहे हैं। अपने जिन मकानों और भवनों को देखकर हम गरूर करते हैं, वे किसके रहे हैं ? सौ साल के बाद हर मकान पुराना हो जाता है और हजार साल के बाद हर धर्म भी जीर्णशीर्ण हो जाया करता है। ऐसा कौन है जो समय के इस ‘परिवर्तन-धर्म' को समझे? जिसने समय के इस परिवर्तन के मर्म को समझ लिया, मैं समझता हूँ कि वह समयातीत और कालातीत हो गया।
पृथ्वी घूम रही है, सूरज घूम रहा है, चाँद, सितारे, ग्रह, नक्षत्र सब कुछ बदल रहे हैं। किसमें परिवर्तन नहीं आ रहा है ? सूरज भी जो हमें दिखाई देता है धूप से चमकता हुआ; इसकी भी गर्माहट बढ़ रही है। ओजोन की पर्तों में छेद हो चुके हैं। पृथ्वी घूम रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि केवल पृथ्वी ही नहीं घूम रही है बल्कि सारा ब्रह्माण्ड घूम रहा है। यह दशहरा मैदान भी घूम रहा है। ये अपने मकान भी घूम रहे हैं। हम भी घूम रहे हैं। समय के धरातल पर सब कुछ बदल रहा है, किन्तु सातत्य के कारण दिखाई नहीं देता। लगता है कि कल भी दशहरा मैदान यहीं देखा था और आज भी यहीं देख रहे हैं। जब सारी पृथ्वी घूम रही है तो क्या दशहरा मैदान टिका हुआ है ? अरे, जब हमारे हाथ पर पहनी हुई घड़ी भी चल रही है, हमारे हृदय की धड़कन भी जब लगातार चल रही है, हमारी नसों में, हमारी नब्ज में चलने वाला खून भी लगातार बहता चला जा रहा है तो हम कौन से स्थिर हैं ?
सब बदल रहा है। जिसे आज आप बेटा कहते हैं कल वह पापा बन जाएगा। एक दिन ऐसा आएगा कि आज आप दादा हैं किन्तु कल मिट्टी में चले जाओगे और पोता कल दादा बन जाएगा। कौन समझेगा समय को? महावीर ने बहुत गहरी बात कही है। उन्होंने तो सारी सृष्टि के संचालन में मूल आधार ही समय को खड़ा कर दिया है। वे कहते हैं कि दुनिया में एक तत्त्व ऐसा होता है जो संसार में सब चीजों को गति देता है, सहायता देता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो हर किसी को स्थिति पाने में मदद करता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो आदमी को गति और स्थित करने में अवकाश देता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो किसी भी तत्त्व के निर्माण में आधार प्रदान करता है। एक तत्त्व ऐसा होता
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