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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
किसी शिव पर चढ़ाया जाने वाला अभिषेक नहीं है वरन् यह तो जीवन की वह मंगल प्रेरणा है जो शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले हर आदमी को इस बात का बोध देती है कि जैसे कलश से एक-एक बूंद पानी रिस रहा है, तुम्हारा जीवन भी ऐसे ही रिस रहा है। एक-एक बूंद, एक-एक बूंद। सांझ को कलश भरा, किन्तु सुबह फिर खाली हो गया। सुबह फिर कलश भरा, सांझ को फिर खाली हो गया।
जन्म-जन्म यों ही भरते चले जाते हैं। हर जन्म का जीवन यों ही खाली होता चला जाता है। समय के इतिहास में अब तक न जाने हमने कितनी बार अपनी चिताएँ जलाई हैं। समय सब देख रहा है। समय सबका साक्षी है। समय महाभारत के युद्ध को भी देख चुका है। त्रेता के राम की आँखों में, समय ने आँसू भी देखे हैं।
त्रेता के राम की आँखों में,
आँसू का निर्झर पलता था, सीता का आँचल इसीलिए, करुणा से भीगा लगता था। सारा द्वापर ही उलझ गया, नारी के बिखरे बालों में। ज्योति तो कम, पर धुआँ बहुत,
उठता था जली मशालों में। समय ने द्वापर-युग को भी देखा है। समय ने यह भी देखा है कि नारी के बिखरे बालों में किस तरह पूरा का पूरा युग उलझ जाता है और महाभारत शुरू हो जाता है। उसने सतयुग भी देखा है। उसने त्रेता और द्वापर युग भी देखें हैं और वह कलियुग का भी द्रष्टा है। अच्छे लोग आज भी हैं, बुरे लोग तब भी थे। कलियुग कल भी था जिसे समय ने सतयुग कहा। अच्छे लोग आज भी हैं जिसे लोग कलियुग कहते हैं।
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