Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 42
________________ आशा के दो दीप जलाएँ 35 उसमें दो-चार बड़ी-बड़ी चाबियाँ भी ! वे चाबियाँ चाहे किसी अलमारी या तिजोरी में न लगती हों फिर भी .....! वे तो उन्हें चाहिए ही। मैंने किसी घर में एक बंगाली महिला को देखा जो वहाँ घर का काम किया करती थी। मैंने देखा कि उसकी साड़ी के एक पल्ले में चार-पाँच बड़ीबड़ी चाबियाँ बंधी हैं। सोचा कि काम तो नौकरानी जैसे हैं पर चाबियाँ रईसों जैसी। वे तो किसी जवाहरात की दुकान या तिजोरी की मालूम होती थीं। मैंने उससे पूछा, ‘बहिन, तुम्हारे घर में क्या इतने बड़े-बड़े ताले हैं जो इतनी बड़ीबड़ी चाबियाँ रखती हों ?' वह सकपका गई, लेकिन मुस्कराते हुए आगे चली गई। मैंने उसे धन्यवाद दिया कि वह भी चाबियों की व्यर्थता जान गई है कि चाबियाँ केवल दिखाने के लिए होती हैं। यह मनुष्य की आदत है कि उसे बोझ के बिना जीवन बेकार लगता है। हमें इस बोझ की यंत्रणा से बाहर आना है। मैंने देखा है कि कुछ साधु-संत स्वयं को शारीरिक यंत्रणा देते हैं तो संसारी लोग मानसिक यातनाएँ ओढ़े रहते हैं। अगर वे अपने मन को स्वस्थ रखने का तरीका स्वयं जान लें तो आधी चिकित्सा स्वयं करने में समर्थ हो जाएँगे। तब उन्हें किसी न्यूरो-फिजिशियन के पास नहीं जाना पड़ेगा। प्रायः औषधियाँ तो मनुष्य के घटे हुए आत्मबल को बढ़ाने के लिए नहीं दी जाती हैं लेकिन अगर वह स्वयं ही अपना आत्मबल अथवा मनोबल जाग्रत कर ले तो जो काम दवा करेगी, वह खुद ही कर सकेगा। तुम्हारा संकल्प, साहस और शौर्य सब कुछ कर सकता है। आप प्रत्येक कार्य प्यार से करें, उदासीनता से नहीं। ___मैं हमेशा कहा करता हूँ कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। छोटे होते हैं विचार। दान की रोटी खाने की अपेक्षा अपनी मेहनत की रूखी-सूखी रोटी खाना कहीं अधिक श्रेष्ठ है। जीवन में स्वावलम्बन को अपनाना अपने जीवन को और अधिक दस वर्ष का आयुष्य देना है। तुम किस मनोदशा से कार्य को सम्पादित करते हो, वही मूल्यवान है। अगर बोझिल मन से या बेमन से आप किसी कार्य को करेंगे तो वह कार्य आपके पाँव की बेड़ी बन जाएगा। वहीं आप यदि प्रसन्नचित्त होकर कोई कार्य करते हैं तो वही कार्य आपके पाँव की पाजेब बन जाएगा। जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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