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आशा के दो दीप जलाएँ
____33 या विषैले व्यंग्य बाणों के लिए, यह उपयोगकर्ता पर निर्भर है। 'ग' से 'गधा'
और 'गणेश' दोनों बनते हैं, 'स' से 'सत्य' और 'सत्यानाश' दोनों होते हैं। हम अपनी जिह्वा से किस शब्द का किस भाव से, किस अर्थ में और किस प्रयोजन के लिए उपयोग करते हैं, यह उपयोग करने वाले पर अवलंबित है। मनुष्य का जीवन तो तानपूरे के तारों की तरह होता है जिसे वह साध ले तो मीराबाई के गीत, चैतन्य महाप्रभु का नृत्य या तुलसीदास के महाकाव्य को अपनी स्वरलहरियाँ दे सकता है। हाँ, अगर उसने तारों को साधने की बजाय अधिक कस दिया तो तानपूरा संगीत का आधार न बनेगा, अपितु वह किसी कौवे की कांव-कांव बन जायेगा। अगर तानपूरे के तारों को जरूरत से अधिक ढीला छोड़ दिया जाय तो तानपूरा संगीत की फुलवारियाँ बरसा न पायेगा। वह बेसुरा हो जायेगा।
जिसे जीवन के तानपूरे को साधना आ गया, तारों को किस मात्रा में कसा या ढीला छोड़ा जाय, व्यक्ति को अगर यह कला आ गई तो ऐसा लगेगा मानो आम्र वृक्ष पर कलियाँ खिल गई हैं और कोयल कुहुक रही है। जो अपने जीवन को कोयल का संगीत दे सकता है, वह जीवन को आनन्द की फुलवारियों से महका सकता है। वह अपने जीवन को बेसुरे रागों में क्यों उलझायेगा ? मैं जानता हूँ कि अगर आपको जीने की कला मिल जाय तो धरती का नरक बदलने के लिए किसी धर्मराज या यमराज की जरूरत नहीं होगी। मुझे नहीं पता कि किस धर्मराज ने नरक को स्वर्ग बनाया हो या यमराज ने स्वर्ग में जाकर उसे नरक में तब्दील किया हो। लेकिन मैं भलीभाँति जानता हूँ कि जब-जब मनुष्य ने जीवन को जीवन का आयाम दिया तथा जीने की कला अपनाई, तब-तब उसने धरती को,जीवन को, जीवन की व्यवस्थाओं को स्वर्ग जैसा, बदरीवन जैसा आयाम और सौन्दर्य प्रदान किया है।
धरती पर दिव्य पुरुषों को भी नरक का सामना करना पड़ा है। पृथ्वी से चले जाने के बाद भले ही उनके प्रयासों तथा कार्यों को अनुकरणीय माना जाय। यहाँ जीसस को सूली पर टांग दिया जाता है, मंसूर के हाथ-पाँव काट दिये जाते हैं, सुकरात को जहर पीना पड़ता है और महावीर के कानों में कीलें ठोंकी जाती है। जिसने अपने जीवन को स्वर्ग बनाने का स्वरूप जान लिया,
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