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क्या करें कामयाबी के लिए ?
विल्मा रोडॉल्फ एक महान एथलीट हुई है जिसे चार वर्ष की उम्र में लकवा हो गया था। उसके दोनों पैर बेकार हो गये थे । उसके कृत्रिम पैर लगाये गये तब वह चलने-फिरने लायक हुई। जब वह सोती तो सपने देखती कि वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन सकती है लेकिन जब उसकी आँखें खुलतीं तो उसके आँसू आ जाते अपने कृत्रिम पाँवों को देखकर । उसके मन में धाविका बनने की इच्छा रह-रहकर जाग्रत हो जाती । अन्ततः विल्मा ने निर्णय लिया कि चाहे जो कुछ भी करना पड़े, वह धाविका जरूर बनेगी। नौ वर्ष की आयु में उसने नकली टांगों पर से जूते हटा दिये। जब वह सौ कदम चली तो दस बार गिरी किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। आदमी को केवल गिरना ही नहीं, गिरकर सँभलना भी आना चाहिए ।
विल्मा चलती रही और अभ्यास करती रही । एक वर्ष में उसकी टांगों में इतनी ताकत आ गई कि वह सौ मीटर धीरे-धीरे दौड़ने लगी । जिस दिन वह दौड़ी उस दिन उसका सोया हुआ आत्म-विश्वास जग गया। उसने जाना कि वह श्रेष्ठ धाविका जरूर बन सकती है। उसका अभ्यास और परिश्रम रंग लाया । वह ओलम्पिक में दौड़ने के लिए चुनी गई। दौड़ शुरू हुई। अन्य धावकों के साथ वह भी दौड़ी, जब वह दौड़ रही थी तो उसने महसूस किया कि उसकी कमर पर जो बेल्ट बँधा है तथा जिसके सहारे उसकी कृत्रिम टांगें सम्बद्ध हैं वह खुल रहा है। अन्य खिलाड़ी आगे निकल गये थे । वह झुकी। उसने बेल्ट कसा और ऐसी दौड़ लगाई कि सब देखते ही रह गये । उसने स्वयं को श्रेष्ठ ही नहीं सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया और तीन स्वर्ण पदक जीते। प्रकृति ने भले ही उसे वंचित किया हो लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के बल पर उसने सफलता के शिखर को छू ही लिया ।
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यह जीवन का सच है कि अगर किसी के भीतर इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास जाग्रत हो जाय तो वह किन्हीं भी रास्तों पर चले, अवश्य सफल होगा। सुकरात से एक युवक ने सफलता का राज़ पूछा तो सुकरात ने उसे अपने साथ चलने को कहा। दोनों चलते-चलते नदी के किनारे पहुँचे। सुकरात ने कहा, 'बेटा, नदी में उतरो ।' युवक ने सोचा, 'क्या सफलता का मापदंड नदी से
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