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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
थे। गरीब घर में पैदा होना अभिशाप नहीं है, लेकिन अपने मन को गरीब मान लेना ही अभिशाप है। विकलांग होना भी सफलता में आड़े नहीं आता। धरती पर ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्होंने विकलांगता को भी चुनौती दे डाली थी। प्रकृति-प्रदत्त अभावों को चुनौती देकर वे प्रकृति पर भी विजय पाने में सफल रहे। शरीर भले ही विकलांग हो जाये, पर मन को विकलांग मत बनने दीजिए। हाथ-पाँव टूट जायें, चिंता न करें पर मन और मानसिकता नहीं टूटनी चाहिए।
हम सभी ने संगीतकार रवीन्द्र जैन और बीथोवन का नाम सुना है। उनके द्वारा बनाई गई संगीत की धुनें अत्यन्त लोकप्रिय हुईं। आप जानते ही होंगे कि रवीन्द्र जैन दृष्टिहीन है और बीथोवन बधिर है। अगर मुझे कोई देश की बागडोर थमा दे तो मैं ऐसे ही लोगों को भारत-रत्न' का सम्मान देना चाहूँगा जो प्रकृति द्वारा तो अभावग्रस्त रहे लेकिन अपने पुरुषार्थ के बल पर उन्होंने कीर्तिमान स्थापित किये। आपने पं. सुखलाल जी का नाम शायद सुना हो। वे चौदह वर्ष की उम्र में अपने नेत्र गँवा बैठे थे। उनसे जब कोई मिलने आता तो उनका आग्रह होता कि कोई अच्छी किताब लाई जाए और उन्हें पढ़कर सुनाई जाए। दुनिया भर के शास्त्रों को पढ़कर उन्होंने जो प्रज्ञा प्राप्त की थी, वह शास्त्र. व्याख्या में प्रकट हुई जो आज भी अनुपम और अतुलनीय है। डॉ. रघुवंश सहाय के हाथ नहीं हैं। उन्होंने पैरों से अपनी किताबें लिखी हैं। प्रकृति ने तो अभाव दिये, लेकिन अपने आत्म-विश्वास और दृढ़-स्थिर-मन से भी लोगों ने कामयाबियाँ भी हासिल की हैं।
मैं हेलन केलर का नाम बहुत श्रद्धा और आदर के साथ लेना चाहूँगा। प्रकृति ने उनके साथ बड़ा अन्याय किया था। वे जन्म से ही दृष्टिहीन, गूंगी
और बहरी थीं लेकिन सम्पूर्ण विश्व उनके द्वारा दी गई सौगातों का ऋणी है। उन्होंने दृष्टिहीनों के हितार्थ पढ़ने के लिए लिपि का आविष्कार किया। हेलन केलर की सहयोगी एम. सलेवान जो उनकी मित्र और शिक्षिका थी, ने हेलन पर इतना श्रम किया कि आने वाले समय के लिए हेलन दृष्टिहीनों के लिए 'प्रकाश-स्तंभ' अथवा 'मील का पत्थर' साबित हुईं।
विकलांग होना प्रकृति का अभिशाप हो सकता है, लेकिन जीवन में
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