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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
स्तरीय शिक्षा पाई है तो वह अपने जीवन में कभी बदी के रास्ते नहीं अपनायेगा। वह गलत राहों पर नहीं चलेगा, वह शराब, तम्बाकू, मांस आदि असेव्य पदार्थों को कदापि ग्रहण न करेगा। इसके विपरीत यदि कोई इन्हें ग्रहण करता है तो मेरी दृष्टि में वह अशिक्षित ही है। तुम कितनी भी शिक्षा प्राप्त क्यों न कर लो, अगर शिक्षा के साथ जीवन के संस्कारों की दीक्षा न हो पाई तो सारी शिक्षा निरर्थक ही रह जाएगी। तुम्हारा स्तर एम.ए. होने से नहीं एम.ए.एन. (मैन, मनुष्य) होने से बढ़ता है। शिक्षा के स्तर के साथ ही व्यक्ति की सोच, उसके विचार, उसकी जीवन-शैली भी ऊँची उठती है।
हमारी सोच और मानसिकता को प्रभावित करने वाला दूसरा तत्व है : 'वातावरण।' जिस माहौल या वातावरण में हम रहते हैं, वही हमारी सोच का कारक होता है। बच्चे को जैसा वातावरण मिलेगा, उसका वैसा ही विकास होगा। हर बीज को व्यक्त होने के लिए वांछित परिवेश चाहिए। बच्चा तो गीले प्लास्टर की तरह है। हम उस पर जैसे निशान छोड़ेंगे, उसके भोले मन पर वे वैसे ही अंकित हो जाएगे। अच्छा पिता वह नहीं है जो संतान को जन्म दे, महान् वह भी नहीं है जो अपनी संतति को सम्पत्ति दे। महान् पिता वह है जो अपनी संतान को अच्छे संस्कार दे, उसे बेहतर जीवन जीने का अच्छा वातावरण
दे।
बच्चों पर निवेश करने के लिए यदि सबसे श्रेष्ठ कोई चीज है तो वह आपका बेशकीमती समय है, संस्कार है। आपके वे विचार हैं जो आप अपने आने वाले भविष्य में अपनी ओर से अपनी संतति की ओर से पुष्पित और पल्लवित करना चाहते हैं। कहा जाता है न कि डाकू के खेमे में अगर तोता रहेगा तो; वह अपने खेमे की तरह आते हुए किसी राहगीर को देखकर कहेगा 'लूटो-लूटो, कोई माल आया है। यदि संत की कुटीर में रहने वाला तोता जब किसी राहगीर को वहाँ से गुजरते हुए देखेगा तो कहेगा, 'राम-राम, स्वागतम् - स्वागतम्, कोई अतिथि आया'। जिस वातावरण में तोता रहेगा, वही सीखेगा। फिर मनुष्य तो विकसित मस्तिष्क का स्वामी है। उसे जैसा माहौल, वातावरण मिलेगा, वह वैसा ही होता जाएगा।
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