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(xxix) प्रमेयरत्नमालान्तर्गत कुछ विशिष्ट विषयों का प्रतिपादन किया गया है। इसकी भी हस्तलिखित प्रति जैनसिद्धान्त भवन, आरा में उपलब्ध है। इसे सम्पूर्ण परीक्षामुख की टीका नहीं कहा जा सकता। (5) न्यायमणिदीपिका
विक्रम संवत् 18वीं शती में विद्वान् श्री अजितसेन ने परीक्षामुख पर न्यायमणिदीपिका नामक व्याख्या लिखी है। (6) अर्थप्रकाशिका
विजयचन्द्र नामक विद्वान् ने परीक्षामुख पर अर्थप्रकाशिका नामक व्याख्या लिखी है।
इसके अतिरिक्त पं. जयचन्द जी छावड़ा की भाषा वचनिका तथा श्री पं. घनश्यामदास जी न्यायतीर्थ की हिन्दी व्याख्या प्रमुख है। इन सभी टीकाओं में एवं हिन्दी व्याख्याओं से परीक्षामुख का महत्त्व प्रदर्शित होता है। परीक्षामुख पर कई आधुनिक विद्वानों के हिन्दी अनुवाद भी उपलब्ध हैं। जिनमें पं. हीरालाल जी शास्त्री, साढ़मल, आर्यिका जिनमती जी, प्रो. उदयचन्द जैन, वाराणसी, डॉ. रमेशचन्द जैन, बिजनौर, तथा डॉ. योगेश जैन, एटा प्रमुख हैं। परीक्षामुख पर पूर्ववर्ती आचार्यों का प्रभाव
यह हम पहले ही लिख आये हैं कि परीक्षामुख ग्रन्थ मुख्यतः पूर्ववर्ती आचार्यों के ग्रन्थों विशेषकर आचार्य अकलंकदेव के न्यायग्रन्थों के आलोक में हुयी है। किन्तु उसके साथ ही साथ बौद्ध आचार्य दिग्नांग के न्याय प्रवेश और धर्मकीर्ति के न्यायबिन्दु का भी परीक्षामुख पर प्रभाव है। बौद्धदर्शन के हेतुमुख और न्यायमुख जैसे ग्रन्थ भी मौजूद थे, अतः ग्रन्थ के नामकरण में 'मुख' संज्ञा भी प्रभाव के कारण ही आयी प्रतीत होती है।
परीक्षामुख में प्रज्ञाकरगुप्त के भाविकारणवाद और अतीतकारणवाद की समालोचना की गयी है। प्रज्ञाकरगुप्त के प्रमाणवार्तिकालङ्कार में भाविकारणवाद और भूतकारणवाद का समर्थन किया गया है। परीक्षामुख