Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 289
________________ प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार: 6/29 253 मनसि वर्त्तते न वाचि विपक्षे चास्मदादिबाह्यकरणाप्रत्यक्षे गगनादौ नित्यत्वं वर्त्तते न सुखादौ । सपक्षे च घटादावस्याऽवृत्तेः सपक्षावृत्तित्वम् । सामान्यस्य च सपक्षत्वं सामान्या (न्य) विशेषवत्त्वविशेषणाद्व्यवच्छिन्नम् । योगिवाह्यकरणप्रत्यक्षस्य चाकाशादेरस्मदाद्यऽग्रहणादसपक्षत्वम् । 34. पक्षैकदेशवृत्तिः सपक्षावृत्तिर्विपक्षव्यापको यथा - नित्ये वाग्मनसे उत्पत्तिधर्मकत्वात्। उत्पत्तिधर्मकत्वं हि पक्षैकदेशे वाचि वर्तते न मनसि सपक्षे चाकाशादौ नित्ये न वर्त्तते विपक्षे च घटादौ सर्वत्र वर्त्तते इति । 35. तथाऽसति सपक्षे चत्वारो विरुद्धाः पक्षविपक्षव्यापकोऽविद्यमानसपक्षी यथा-आकाशविशेषगुणः शब्दः प्रमेयत्वात् प्रमेयत्वं हि पक्षे शब्दे वर्तते। विपक्षे चानाकाशविशेषगुणे घटादौ, न तु सपक्षे तस्यैवाभावात्। न एक देश में तथा विपक्ष के एक देश में रहने वाला कहा जाता है। घट आदि सपक्षभूत पदार्थ में यह हेतु नहीं रहने से सपक्ष आवृत्ति वाला है। यहाँ सामान्य को सपक्षपना नहीं है क्योंकि "सामान्य विशेषवान है" ऐसे विशेषण द्वारा सामान्यनामा पदार्थ का व्यवच्छेद किया है। योगिजन के बाह्येन्द्रिय से प्रत्यक्ष होने वाले आकाशादिक यहाँ सपक्ष नहीं हो सकते, क्योंकि वे हमारे द्वारा अग्राह्य हैं। 34. जो हेतु पक्ष के एक देश में रहता हो, सपक्ष आवृत्ति वाला हो, और विपक्ष में पूर्ण व्यापक हो वह चौथा विरुद्ध हेत्वाभास है। जैसे मन और वचन नित्य है, क्योंकि उत्पत्ति धर्म वाले हैं, यह उत्पत्ति धर्मत्व हेतु पक्ष के एकदेशभूत वचन में रहता है और एकदेशभूत मन में नहीं रहता। नित्य सपक्षभूत आकाशादि में नहीं रहता तथा विपक्षभूत घटपटादि में सर्वत्र ही रहता है। 35. अब जिसका सपक्ष विद्यमान ही नहीं होता ऐसे विरुद्ध हेत्वाभास के चार भेद बतलाते हैं जो हेतु पक्ष विपक्ष में व्यापक है और अविद्यमान है सपक्ष जिसका ऐसा है उस विरुद्ध हेत्वाभास का उदाहरण- जैसे शब्द आकाश का विशेष गुण है, क्योंकि वह प्रमेय है। यह प्रमेयत्व हेतु पक्षभूत शब्द में रहता है, जो आकाश का गुण नहीं है ऐसे घट आदि विपक्ष में भी रहता है, किन्तु सपक्ष में नहीं रहता, क्योंकि

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