Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 303
________________ 6/44 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 267 54. असिद्धतव्यतिरेका:-असिद्धस्तेषां साध्यसाधनोभयानां व्यतिरेको [व्या]वृत्तिर्येषु ते तथोक्ताः। यथाऽपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादित्युक्त्वा यन्नापौरुषेयं तन्नामूर्त परमाण्विन्द्रियसुखाकाशवदिति व्यतिरेकमाह। परमाणुभ्यो ह्यमूर्तत्वव्यावृत्तावप्यऽपौरुषेयत्वं न व्यावृत्तमपौरुषेयत्वात्तेषाम्। इन्द्रियसुखे त्वपौरुषेयत्वव्यावृत्तावप्यमूर्त्तत्वं न व्यावृत्तममूर्त्तत्वात्तस्य। आकाशे तूभयं न व्यावृत्तमपौरुषेयत्वादमूर्त्तत्वाच्चास्येति। न केवलमेत एव व्यतिरेके दृष्टान्ताभासाः किंतु या साधन की अथवा दोनों के व्यतिरेक की व्याप्ति सिद्ध नहीं हो वह व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है। 54. व्यतिरेक दृष्टान्ताभास के तीन भेद होते हैं- साध्य व्यतिरेक रहित, साधन व्यतिरेक रहित तथा उभय साध्य साधन व्यतिरेक रहित। असिद्ध है साध्य साधन और उभय का व्यतिरेक जिनमें उनको कहते हैं असिद्ध तद् व्यतिरेक, इस तरह “असिद्ध तद् व्यतिरेकाः" इस पद का समास विग्रह है। अब क्रमशः इनका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं- शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है इस प्रकार साध्य और हेतु को कहकर व्यतिरेक दृष्टान्त बताया कि जो अपौरुषेय नहीं है वह अमूर्त भी नहीं होता जिस प्रकार परमाणु, इन्द्रिय सुख तथा आकाश अपौरुषेय नहीं होने से अमूर्त नहीं होते, सो ये तीनों ही दृष्टान्त गलत है। इसका विवेचन इस प्रकार है-परमाणुओं से अमूर्त्तत्व तो व्यावृत होता है [परमाणु में अमूर्त्तत्व नहीं होने से] किन्तु अपौरुषेयत्व व्यावृत्त नहीं होता, क्योंकि परमाणु अपौरुषेय ही हुआ करते हैं। दूसरा दृष्टान्त इन्द्रिय सुख का दिया इसमें अपौरुषेय की व्यावृत्ति तो है किंतु अमूर्त की व्यावृत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि इन्द्रिय सुख अमूर्त ही है। तीसरा दृष्टान्त आकाश का है, आकाश में न अपौरुषेय की व्यावृत्ति हो सकती है और न अमूर्त्तत्व की व्यावृत्ति हो सकती है, आकाश तो अपौरुषेय भी है और अमूर्त भी है अतः आकाश को दृष्टान्त साध्य साधन दोनों के

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