Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 316
________________ 280 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/60 प्रतिपादितश्चायं प्रतिभासभेदः सामग्रीभेदश्चाध्यक्षादीनां प्रपञ्चतस्त विषयों को पहले “तवेधा" इस सूत्र का विवेचन करते समय कह चुके हैं। यहां आचार्य के कहने का अभिप्राय यह है कि- प्रत्यक्ष और परोक्ष इस प्रकार दो मुख्य प्रमाण हैं ऐसा पहले सिद्ध कर आये हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण के सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और पारमार्थिक प्रत्यक्ष इस प्रकार दो भेद हैं। इन दो में “विशदं प्रत्यक्षं" ऐसा प्रत्यक्ष का लक्षण पाया जाता है अतः ये कथंचित् लक्षण अभेद की अपेक्षा एक भी है। परोक्ष प्रमाण के स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ऐसे पाँच भेद है। इन सभी में परोक्षमितरत्, अविशदं परोक्षम्, ऐसा लक्षण सुघटित होता है, अतः इसमें कथंचित् अभेद भी है। प्रत्यक्ष प्रमाण में पारमार्थिक प्रत्यक्ष की सामग्री अखिल आवरण कर्मों का नाश होना है और सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष की सामग्री इन्द्रियाँ तथा मन है, अंतरंग में आवरण कर्म का क्षयोपशम होना है। परोक्ष ज्ञान में, स्मृति में कारण प्रत्यक्ष प्रमाण तथा तदावरण कर्म का क्षयोपशम है, प्रत्यभिज्ञान में प्रत्यक्ष तथा स्मृति एवं तदावरण कर्म का क्षयोपशम- इस प्रकार कारण हैं। ऐसे ही तर्क आदि प्रमाणों के कारण अर्थात् सामग्री समझ लेना चाहिये। इस तरह विभिन्न सामग्री के होने से प्रत्यक्ष तथा परोक्ष प्रमाणों में एवं इनके प्रभेदों में विभिन्नता आया करती है। प्रतिभास का भेद भी इनमें दिखायी देता है, प्रत्यक्ष का प्रतिभास विशद-स्पष्ट है और परोक्ष का अविशद-अस्पष्ट है। ऐसे ही इनके सांव्यवहारिक या अनुमानादि में कथंचित् विभिन्न विभिन्न प्रतिभास होते हैं, अतः इन ज्ञानों को भिन्न भिन्न प्रमाणरूप माना है। जैन से अन्य परवादी जो चार्वाक बौद्ध आदि हैं उनके यहाँ प्रमाण संख्या सही सिद्ध नहीं होती क्योंकि प्रथम तो वे लोग प्रमाण का लक्षण गलत करते हैं। दूसरी बात इनके माने गये एक दो आदि प्रमाण द्वारा इन्हीं का इष्ट सिद्धान्त सिद्ध नहीं हो पाता, चार्वाक को परलोक का निषेध करना इष्ट है किन्तु वह प्रत्यक्ष से नहीं हो सकता, ऐसे ही बौद्ध को अनुमान प्रमाण

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