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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
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जयपराजयविमर्शः अथेदानीं प्रतिपन्नप्रमाणतदाभासस्वरूपाणां विनेयानां प्रमाणतदाभासावित्यादिना फलमादर्शयतिप्रमाण-तदाभासौ दुष्टतयोद्भावितौ परिहृतापरिहृतदोषौ वादिनः साधन-तदाभासौ प्रतिवादिनो दूषण-भूषणे च ॥73॥
63. प्रतिपादितस्वरूपौ हि प्रमाणतदाभासौ यथावत्प्रतिपन्नाप्रतिपन्नस्वरूपौ जयेतरव्यवस्थाया निबन्धनं भवतः। तथाहि-चतुरङ्गवादमुररीकृत्य विज्ञातप्रमाणतदाभासस्वरूपेण वादिना सम्यक्प्रमाणे स्वपक्षसाधनायोपन्यस्ते
जय-पराजय विमर्श अब जिन्होंने प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप जाना है ऐसे शिष्यों को प्रमाण और प्रमाणाभास जानने का फल क्या है वह बताते हैं
प्रमाण-तदाभासौ दुष्टतयोद्भावितौ परिहृताऽपरिहृतदोषौ वादिनः साधन-तदाभासौ प्रतिवादिनो दूषण-भूषणे च
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63. प्रमाण और प्रमाणाभास का स्वरूप बता चुके हैं, यदि इनका स्वरूप भली प्रकार जाना हुआ है तो वाद में जय होती है और यदि नहीं जाना हुआ है तो पराजय होती है।
सूत्रार्थ- वादी के द्वारा प्ररूपित किये प्रमाण और प्रमाणाभास, प्रतिवादी के द्वारा दोष रूप से प्रगट किये जाने पर वादी से परिहार दोष वाले रहते हैं, तो वे वादी के लिए साधन हैं और दोषों का परिहार नहीं कर पाता है तो साधनाभास है, और प्रतिवादी के लिए यही क्रमशः दूषण और भूषण है।