Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 307
________________ 6/48-49 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 271 धूमवांश्चायमिति वा ॥48॥ 56. यो ह्यव्युत्पन्नप्रज्ञोऽनुमानप्रयोगे पञ्चावयवे गृहीतसङ्केतः स उपनयनिगमनरहितस्य निगमनरहितस्य वानुमानप्रयोगस्य तदाभासतां मन्यते। न केवलं कियद्धीनतैव बालप्रयोगाभासः किंतु तद्विपर्ययश्च तेषामवयवानां विपर्ययस्तत्प्रयोगाभासो यथा तस्मादग्निमान् धूमवाश्चायमिति ॥49॥ स ह्युपनयपूर्वक निगमनप्रयोगं साध्यप्रतिपत्त्यङ्ग मन्यते, नान्यथा। धूमवांश्चायम् इति वा ॥48॥ सूत्रार्थ- अथवा उपर्युक्त अनुमान में चौथा अवयव जोड़ना अर्थात् “यह प्रदेश भी धूम वाला है" ऐसे उपनय युक्त चार अवयव वाला अनुमान प्रयोग करना भी बाल प्रयोगाभास कहा जाता है। __56. जो पुरुष अव्युत्पन्न बुद्धि है, जिसको सिखाया हुआ है कि अनुमान में पाँच अवयव होते हैं, सो ऐसे पुरुष के प्रति उपनय और निगमन रहित अनुमान प्रयोग करना अथवा निगमन रहित अनुमान प्रयोग करना ये सब बाल प्रयोगाभास है। आगे यह बताते हैं कि कम अवयव बताना मात्र बाल प्रयोगाभास नहीं है किन्तु और कारण से अर्थात् विपरीत क्रम से कहने के निमित्त से भी बाल प्रयोगाभास होता है, जैसे तस्मादग्निमान् धूमवांश्चायमिति 149॥ सूत्रार्थ- अतः अग्निमान है, यह भी धूमवान है। इस प्रकार पहले निगमन और पीछे उपनय का प्रयोग करना भी बाल प्रयोगाभास है। जिनके मत में पंचावयवी अनुमान माना है अथवा जो अव्युत्पन्न है वह उपनय पूर्वक निगमन का प्रयोग होने को ही साध्य सिद्धि का कारण मानता है, इससे विपरीत निगमनपूर्वक उपनय के प्रयोग को साध्य-सिद्धि का कारण नहीं मानता अतः विपरीत क्रम से प्रयोग करना बाल प्रयोगाभास होता है। इसका भी कारण यह है कि

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