Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 313
________________ 6/57 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 277 61. यथैव हि सौगतसांख्ययोगप्राभाकरजैमिनीयानां मते प्रत्यक्षानुमानागमोपमानार्थापत्त्यभावैः प्रमाणैरेकैकाधिकैर्व्याप्तिन। सिध्यत्यतद्विषयत्वात् तथा प्रकृतमपि। प्रयोगः-यद्यस्याऽविषयो न ततस्तत्सिद्धिः यथा प्रत्यक्षानुमानाद्यविषयो व्याप्तिर्न ततः सिद्धिसौधशिखरमारोहति, अविषयश्च परलोकनिषेधादिः प्रत्यक्षस्येति। सूत्रार्थ- जिस प्रकार सौगत, सांख्य, योग, प्राभाकर, जैमिनी के मत में क्रमशः प्रत्यक्ष और अनुमानों द्वारा, प्रत्यक्ष-अनुमान-आगमों द्वारा, प्रत्यक्षादि में एक अधिक उपमा द्वारा, प्रत्यक्षादि में एक अधिक अर्थापत्ति और उन्हीं में एक अधिक अभाव प्रमाण द्वारा व्याप्ति ज्ञान का विषय ग्रहण नहीं होने से उन मतों की दो तीन आदि प्रमाण संख्या बाधित होती है। उसी प्रकार चार्वाक की एक प्रमाण संख्या बाधित होती है। चार्वाक एक प्रत्यक्ष प्रमाण मानता है किन्तु एक प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा उसी चार्वाक का इष्ट सिद्धान्त जो परलोक का खंडन करना आदि है वह किया ही नहीं जा सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष का विषय परलोकादि नहीं है। प्रत्यक्ष प्रमाण उसको जान नहीं सकता। 61. इसी प्रकार सौगत प्रत्यक्ष और अनुमान ऐसे दो प्रमाण माने हैं किन्तु इन दो प्रमाणों द्वारा तर्क का विषय जो व्याप्ति है [जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ अग्नि होती है इत्यादि] उसका ग्रहण नहीं होता अतः दो संख्या मानने पर भी इष्ट मत की सिद्धि नहीं हो सकती। प्रत्यक्ष अनुमान और आगम ऐसे तीन प्रमाण सांख्य मानते हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान ऐसे चार प्रमाण योग [नैयायिकवैशेषिक] मानते हैं, प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमा और अर्थापत्ति ऐसे पाँच प्रमाण प्रभाकर मानते हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमा, अर्थापत्ति और अभाव ऐसे छह प्रमाण जैमिनी [मीमांसक] मानते हैं किन्तु इन प्रमाणों द्वारा व्याप्ति का ग्रहण नहीं होता क्योंकि उन प्रत्यक्षादि छह प्रमाणों में से किसी भी प्रमाण का विषय व्याप्ति है ही नहीं, व्याप्ति का ग्रहण करते हुए बिना अनुमान आदि प्रमाणों की सिद्धि हो नहीं सकतीऐसा परोक्ष प्रमाण का वर्णन करते हुए सिद्ध कर चुके हैं।

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