Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ 258 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/34 न्तरम्, सर्वत्र विपक्षस्यैकदेशे सर्वत्र वा विपक्षे वृत्त्या विपक्षेप्यविरुद्धवृत्तित्वलक्षणसम्भवादित्युदाह्रियते। 41. पक्षत्रयव्यापको यथा-अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात्। पक्षे सपक्षे विपक्षे चास्य सर्वत्र प्रवृत्तेः पक्षत्रयव्यापकः। 42. सपक्षविपक्षकदेशवृत्तिर्यथा-नित्यः शब्दोऽमूर्त्तत्वात्। अमूर्त्तत्वं हि पक्षीकृते शब्दे सर्वत्र वर्त्तते। सपक्षकदेशे चाकाशादौ वर्त्तते, न परमाणुषु। विपक्षैकदेशे च सुखादौ वर्त्तते न घटादाविति। 43. पक्षपक्षव्यापको विपक्षैकदेशवृत्तिर्यथा-गौरयं विषाणित्वात्। विषाणित्वं हि पक्षीकृते पिण्डे वर्त्तते, सपक्षे च गोत्वधर्माध्यासिते सर्वत्र व्यक्तिविशेषे, विपक्षस्य चागोरूपस्यैकदेशे महिष्यादौ वर्त्तते न तु मनुष्यादाविति। प्रथम अनैकान्तिक हेत्वाभास 41. पक्ष विपक्ष सपक्ष तीनों में व्याप्त रहने वाला प्रथम अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- शब्द अनित्य है, क्योंकि प्रमेय है, यह प्रमेय पक्ष शब्द में, सपक्ष घट आदि में और विपक्ष आकाशादि में सर्वत्र ही रहता है, अतः इसे पक्ष त्रय व्यापक कहते हैं। द्वितीय अनैकान्तिक हेत्वाभास 42. जो सपक्ष तथा विपक्ष के एक देश में रहे वह दूसरा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- शब्द नित्य है, क्योंकि वह अमूर्त है, यह अमूर्त्तत्व हेतु पक्षीकृत शब्द में पूर्ण रूप से व्यापक है, सपक्ष के एक देश आकाशादि में तो रहता है परमाणु में नहीं रहता, विपक्ष के भी एक देश स्वरूप सुखादि में रहता है और घटादि विपक्ष में नहीं रहता। तृतीय अनैकान्तिक हेत्वाभास 43. पक्ष और सपक्ष में तो व्यापक हो विपक्ष के एक देश में रहे वह तीसरा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- यह पशु तो बैल है क्योंकि सींग वाला है यह विषाणित्व [सींगवालापन] हेतु पक्षभूत बैल में रहता है, जिसमें गोत्व पाया जाता है ऐसे अन्य सब सपक्षभूत गो

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332