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260 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
6/34 46. पक्षसपक्षकदेशवृत्तिर्विपक्षव्यापको यथा-द्रव्याणि दिक्कालमनास्यमूर्तत्वात्। अमूर्तत्वं हि पक्षस्यैकदेशे दिक्काले वर्तते न मनसि, सपक्षस्य द्रव्यरूपस्यैकदेशे आत्मादौ वर्तते न घटादौ, विपक्षे चाद्रव्यरूपे गुणादौ सर्वत्रेति।
47. पक्षविपक्षकदेशवृत्तिः सपक्षव्यापको यथा-अद्रव्याणि दिक्कालमनांस्यमूर्तत्वात्। अत्रापि प्राक्तनमेव व्याख्यानम् अद्रव्यरूपस्य गुणादेस्तु सपक्षतेति विशेषः। रहता अतः पक्षत्रय एकदेश वृत्ति कहा जाता है। षष्ठ अनैकान्तिक हेत्वाभास
46. पक्ष और सपक्ष के एकदेश में रहे और विपक्ष में व्यापक हो वह छठा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- दिशाकाल और मन ये सब द्रव्य हैं, क्योंकि ये अमूर्त हैं, यहाँ अमूर्त्तत्व हेतुपक्ष का एकदेश जो दिशा और काल है उनमें तो रहता है और शेष एकदेश मन में नहीं रहता। सपक्ष का एकदेश जो द्रव्यरूप आत्मा आदि है उनमें सर्वत्र रहता है यहां यह जानना जरूरी है कि नैयायिकादि परवादी के यहाँ मूर्त्तत्व अमूर्त्तत्व का लक्षण इस प्रकार है-"इयत्ता अवच्छित्रयोगित्वं मूर्त्तत्वं" "इतना है" इस प्रकार जिसका माप हो सके वह मूर्त्तत्व कहलाता है, इससे विपरीत जिसका इतनापना-परिणाम न हो सके वह अमूर्त्तत्व कहलाता है, इस लक्षण के अनुसार सभी गुण-रूप, रस, गंधादिक भी अमूर्त ठहरते हैं, किन्तु यह लक्षण सर्वथा प्रत्यक्ष बाधित है अस्तु, इसी लक्षण के अनुसार यहाँ सभी गुणों को अमूर्त कहा। सप्तम अनैकान्तिक हेत्वाभास
47. पक्ष और विपक्ष के एकदेश में और सपक्ष में सर्वत्र व्यापक हो वहाँ सातवाँ अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- दिशा, काल और मन अद्रव्य हैं- द्रव्य नहीं कहलाते, क्योंकि ये अमूर्त है। यहाँ पर भी पहले कहे हुए छठवें हेत्वाभास के समान सब व्याख्यान घटित करना चाहिये, इतनी विशेषता है कि अद्रव्यरूप जो गुणादिक है वे यहां सपक्ष कहलायेंगे। इसका खुलासा करते हैं "दिशा काल और मन ये अद्रव्य