Book Title: Pramey Kamal Marttandsara
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ 252 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः 6/29 शब्दे प्रवर्त्तते, नित्यविपरीते चानित्ये घटादौ विपक्षे, नाकाशादौ सत्यपि सपक्षे इति। 32. विपक्षकदेशवृत्तिः पक्षव्यापकः सपक्षावृत्तिश्च यथा-नित्यः शब्द: सामान्यवत्त्वे सत्यस्मदादिबाह्येन्द्रियप्रत्यक्षत्वात्। बाह्येन्द्रियग्रहणयोग्यतामात्रं हि बाह्येन्द्रियप्रत्यदक्षत्वमत्र विवक्षितम्, तेनास्य पक्षव्यापकत्वम्। विपक्षकदेशव्यापकत्वं चानित्ये घटादौ भावात्सुखादौ चाभावात् सिद्धम्। सपक्षावृत्तित्वं चाकाशादौ नित्येऽवृत्तेः। सामान्ये वृत्तिस्तु 'सामान्यवत्त्वे सति' इति विशेषणाद्व्यवच्छिन्ना। 33. पक्षविपक्षकदेशवृत्तिः सपक्षावृत्तिश्च यथा-सामान्यविशेषवती अस्मदादिबाह्याकरणप्रत्यक्ष वाग्मनसे नित्यत्वात्। नित्यत्वं हि पक्षैकदेशे ____32. जो हेतु विपक्ष के एक देश में रहता है, पक्ष में व्यापक है सपक्ष में नहीं है वह दूसरा विरुद्ध हेत्वाभास है जैसे- शब्द नित्य है, क्योंकि सामान्यवान् होकर हमारे बाह्येन्द्रिय द्वारा ग्रहण करने योग्य होना इतना ही बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्षत्व का अर्थ विवक्षित है, ऐसी बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्षता पक्षभूत शब्द में रहती है यह बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्षत्व हेतु विपक्ष के किसी देश में रहता है और किसी देश में नहीं, अर्थात् घटादि अनित्य विपक्षभूत वस्तु में बाह्येन्द्रिय से प्रत्यक्षत्व नहीं रहता अतः यह हेतु विपक्षक देशवृत्ति वाला कहलाता है, आकाशादि नित्यभूत सपक्ष में बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्षत्व नहीं रहने से सपक्ष असत्व कहा जाता है। सामान्यवत्वे सति इस विशेषण से सामान्य नामा पदार्थ में इस हेतु का रहना निषिद्ध होता है। 33. जो हेतु पक्ष और विपक्ष के मात्र एक देश में रहे तथा सपक्ष में न रहे वह तीसरा विरुद्ध हेत्वाभास है, जैसे- वचन और मन सामान्य विशेष वाले हैं एवं हमारे बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्ष हैं, क्योंकि नित्य हैं, यहाँ नित्यत्व हेतु पक्ष का एक देश जो मन है उसमें तो रहता है [परवादी ने मन को नित्य माना है और वचन रूप पक्ष में नहीं रहता तथा जो बाह्येन्द्रिय प्रत्यक्ष नहीं है ऐसे आकाशादि विपक्ष में यह नित्यत्व हेतु रहता है किंतु सुखादि विपक्ष में नहीं रहता, इस तरह यह पक्ष के

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332