________________
3/38-39
भावनिश्चयार्थं वा, व्याप्तिस्मरणार्थं वा प्रकारान्तरासम्भवात्? तत्राद्यविकल्पोऽयुक्तः
न हि तत्साध्यप्रतिपत्त्यङ्गं तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥38॥
न हि तत् साध्यप्रतिपत्त्यङ्ग तत्र यथोक्तहेतोरेव साध्याविनाभावनियमैकलक्षणस्य व्यापारात्। द्वितीयविकल्पोप्यसम्भाव्यःतदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धेः ॥39॥
92. न हि हेतोस्तेन साध्येनाविनाभावस्य निश्चयार्थं वा तदुपादानं युक्तम्: विपक्षे बाधकादेव तत्सिद्धेः। न हि सपक्षे सत्त्वमात्राद्धेतोर्व्याप्तिः
साध्य की प्रतिपत्ति कराने के लिये होता है अथवा हेतु का साध्याविनाभाव निश्चित कराने के लिये होता है या व्याप्ति का स्मरण कराने के लिये होता है? उक्त तीन विकल्पों को छोड़कर अन्य प्रकार तो सम्भव नहीं
न हि तत् साध्यप्रतिपत्यकं तत्र यथोक्तहेतोरेव व्यापारात् ॥38॥
सूत्रार्थ- साध्य की प्रतिपत्ति के लिए उदाहरण निमित्त नहीं है, क्योंकि वह प्रतिपत्ति तो यथोक्त (साध्याविनाभावी) हेतु के प्रयोग से ही हो जाती है।
साध्य के साथ जिसका अविनाभावी सम्बन्ध है ऐसे हेतु द्वारा ही साध्य का बोध हो जाने से उदाहरण की आवश्यकता नहीं रहती है। द्वितीय विकल्प हेतु का साध्याविनाभाव ज्ञात करने के लिये उदाहरण रूप अंग को स्वीकार करना भी अयुक्त हैतदविनाभावनिश्चयार्थं वा विपक्षे बाधकादेव तत् सिद्धेः ॥39॥
सूत्रार्थ- साध्य साधन का अविनाभाव निश्चित करने के लिये भी उदाहरण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विपक्ष में बाधक प्रमाण को देखकर ही उसका निश्चय हो जाता है।
92. साध्य के साथ अमुक हेतु का अविनाभाव है इस प्रकार का निर्णय करने के लिए उदाहरण को ग्रहण करना भी अयुक्त है, वह
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 129