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119. तानेव व्याप्यादिहेतून् बालव्युत्पत्त्यर्थमुदाहरणद्वारेण स्फुटयति। तत्र व्याप्यो हेतुर्यथा
परिणामी शब्दः, कृतकत्वात्, य एवं स एवं दृष्टः यथा घटः, कृतकश्चायम्, तस्मात्परिणामीति। यस्तु न परिणामी स न कृतकः यथा वन्ध्यास्तनन्धयः, कृतकश्चायम्, तस्मात् परिणामीति ॥65॥
120. 'दृष्टान्तो द्वेधा अन्वयव्यतिरेकभेदात्' इत्युक्तम्। तत्रान्वयदृष्टान्तं प्रतिपाद्य व्यतिरेकदृष्टान्तं प्रतिपादयन्नाह-यस्तु न परिणामी स न कृतको दृष्टः यथा वन्ध्यास्तनन्धयः, कृतकश्चायम्, तस्मात्परिणामीति। कृतकत्वं हि परिणामित्वेन व्याप्तम्। पूर्वोत्तराकारपरिहारावाप्तिस्थितिलक्षणपरिणामशून्यस्य सर्वथा नित्यत्वे क्षणिकत्वे वा शब्दस्य कृतकत्वानुपपत्तेर्वक्ष्यमाणत्वाद्।
119. अब क्रम से अविरुद्ध उपलब्धिरूप हेतु के छह भेदों का वर्णन बाल बुद्धिवालों को समझाने के लिए उदाहरणपूर्वक उपस्थित करते हैं। उनमें प्रथम क्रम प्राप्त व्याप्य हेतु को दिखलाते हैं
परिणामी शब्दः, कृतकत्वात्, य एवं स एवं दृष्टः यथा घटः, कृतकश्चायं तस्मात् परिणामी। यस्तु न परिणामी स न कृतकः यथा वंध्यास्तनंधयः कृतकश्चायं तस्मात् परिणामी ॥65॥
सूत्रार्थ- शब्द परिणामी है क्योंकि किया जाता है, जो इस तरह का होता है वह ऐसा ही रहता है जैसे घट, शब्द कृतक है अत: परिणामी है। जो परिणामी नहीं होता वह कृतक नहीं होता जैसे वंध्या स्त्री का पुत्र, यह शब्द तो कृतक है इसलिए परिणामी होता है।
120. अन्वय और व्यतिरेक के भेद से दृष्टान्त दो प्रकार का होता है ऐसा कह आये हैं। इस सूत्र में अन्वय दृष्टान्त का प्रतिपादन करके व्यतिरेक दृष्टान्त देते हुए कहते हैं कि जो परिणामी नहीं होता वह कृतक नहीं देखा जाता जैसे वंध्या का पुत्र। यह कृतक है इसलिये
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 155