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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
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पुरुषत्वे सत्यद्याप्यनुत्पन्नतत्त्वज्ञानत्वात्। सन्दिग्धविशेषणासिद्धो यथा-अद्यापि रागादियुक्तः कपिलः सर्वदा तत्त्वज्ञानरहितत्वे सति पुरुषत्वात्। एते एवासिद्धभेदाः केचिदन्यतरासिद्धाः केचिदुभयासिद्धाः प्रतिपत्तव्याः।।
28. ननु नास्त्यन्यतरासिद्धो हेत्वाभासः; तथाहि-परेणासिद्ध इत्युद्भाविते यदि वादी तत्साधकं प्रमाणं न प्रतिपादयति, तदा प्रमाणाभास
अतिक्रम नहीं होने से कोई भिन्नपना नहीं है अर्थात् संदिग्धविशेष्य इत्यादि हेतु पृथक्प से सिद्ध नहीं होते। वे संदिग्धविशेष्यासिद्ध का उदाहरण इस प्रकार कहते हैं- कपिल नामा सांख्य का गुरु अभी भी राग मोहादि से युक्त है, क्योंकि पुरुष होकर उसे तत्त्व ज्ञान नहीं हुआ
संदिग्ध विशेषण असिद्ध हेत्वाभास का उदाहरण- कपिल अभी भी रागादिमान है, क्योंकि तत्त्वज्ञान रहित होकर पुरुष है। इन दोनों अनुमानों में पुरुषत्व और तत्त्वज्ञान रहितत्त्व क्रमशः विशेष्य और विशेषण है वह असिद्ध है। ये विशेष्यासिद्ध इत्यादि हेत्वाभास बतलाये हैं उनमें से कोई कोई हेत्वाभास ऐसे हैं कि वादी प्रतिवादियों में से किसी एक को असिद्ध है, तथा कोई-कोई ऐसे हैं कि दोनों को असिद्ध है।
28. शंका-वादी प्रतिवादियों में से एक के प्रति असिद्ध हो ऐसा कोई हेत्वाभास नहीं होता किन्तु जो भी हेतु असिद्ध होगा तो दोनों के प्रति भी असिद्ध होगा। इसी को बताते हैं-वादी प्रतिवादी विवाद कर रहे हैं उस समय प्रतिवादी ने वादी को कहा कि तुम्हारा कहा हुआ अनुमान का हेतु असिद्ध है, तब उस वाक्य को सुनकर वादी यदि अपने हेतु को सिद्ध करने वाला प्रमाण नहीं बताता है तो वह हेतु प्रमाणाभास के समान दोनों के लिए ही असिद्ध कहलायेगा, अर्थात् जैसे प्रमाणाभास दोनों को अमान्य है वैसे वह हेतु बनेगा, क्योंकि जिस वादी ने हेतु प्रयुक्त किया है उसने उसे सिद्ध नहीं किया।
यदि वह वादी अपने हेतु को सिद्ध करने वाले प्रमाण को उपस्थित करता है तो जो भी प्रमाण होगा वह पक्षपात रहित उभय मान्य