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____ 127. ननु चैवं केवलभूतलस्य प्रत्यक्षसिद्धत्वात्तद्रूपो घटाभावोपि सिद्ध एवेति किमनुपलम्भसाध्यम्? सत्यमेवैतत्, तथापि प्रत्यक्षप्रतिपन्नैप्यभावे यो व्यामुह्यति साङ्ख्यादिः सोनुपलम्भं निमित्तीकृत्य प्रतिपाद्यते। अनुपलम्भनिमित्तो हि सत्त्वरजस्तम:प्रभृतिष्वसद्व्यवहारः। स चात्राप्यस्तीति निमित्तप्रदर्शनेन व्यवहारः प्रसाध्यते। कर दिया है उसका निषेध (अभाव) नहीं किया जाता है। यहाँ पर एक पुरुष के ज्ञान संसर्ग में प्रतिभासमान पदार्थ और उसका ज्ञान इन दोनों को पर्युदासवृत्ति से घट की असत्ता और अनुपलब्धि इन शब्दों द्वारा कहा जा रहा है।
___ अभिप्राय यह है कि किसी एक पुरुष ने एक स्थान पर घट देखा था पुनः किसी समय उस स्थान को घट रहित देखता है तो अनुमान करता है- यहाँ भूतल पर घट नहीं है क्योंकि उपलब्ध नहीं होता (दिखायी देने योग्य होकर भी दिखता नहीं) जो घट पिशाचादि के द्वारा अदृश्य किया गया है उस घट की चर्चा इस अनुमान में नहीं है।
127. शंका- ऐसी बात है तो केवल भूतल तो प्रत्यक्ष सिद्ध है अतः उस रूप घट का अभाव भी सिद्ध ही है इसलिये “नास्त्यत्रभूतले" इत्यादि अनुमान के अनुपलम्भ हेतु से क्या सिद्ध करना है?
समाधान- यह कथन सत्य है किन्तु अभाव के प्रत्यक्ष द्वारा ज्ञात होने पर भी जो सांख्यादिपरवादी उस अभाव के विषय में व्यामोहित हैं अर्थात् अभाव को स्वीकार नहीं करते उनको अनुपलम्भ हेतु का निमित्त करके प्रतिबोधित किया जाता है।
सांख्याभिमत सत्त्वरजतमः आदि प्रकृति के धर्मों में असत्पने का जो व्यवहार होता है वह अनुपलम्भ के निमित्त से ही होता है अर्थात् सत्त्व में रजोधर्म नहीं है अथवा रजोधर्म में सत्त्वधर्म नहीं है इत्यादि अभाव का व्यवहार अनुपलम्भ हेतु द्वारा ही होता है कि- यहाँ सत्त्व में रजोधर्म नहीं है क्योंकि उपलब्धि लक्षण प्राप्त होकर भी अनुपलब्धि है। इस तरह का अनुपलम्भरूप असत् का व्यवहार उक्त अनुमान में भी है इस प्रकार निमित्त प्रदर्शन द्वारा घटाभाव का व्यवहार प्रसाधित किया
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 165