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143. ननु चासौ सहजयोग्यताऽनित्या, नित्या वा? न तावदनित्या; अनवस्थाप्रसङ्गात्-येन हि प्रसिद्धसम्बन्धेन 'अयम्' इत्यादिना शब्देनाप्रसिद्धसम्बन्धस्य घटादे: शब्दस्य सम्बन्धः क्रियते तस्याप्यन्येन प्रसिद्धसम्बन्धेन सम्बन्धस्तस्याप्यन्येनेति। नित्यत्वे चास्याः सिद्धं नित्यसम्बन्धाच्छब्दानां वस्तुप्रतिपत्तिहेतुत्वमिति मीमांसकाः;
को जान सकता है, अन्य को नहीं ऐसी प्रतिकर्म व्यवस्था ज्ञान की क्षयोपशम जन्य योग्यता के कारण हुआ करती है।
यहाँ पर शब्द और पदार्थ के योग्यता का कथन हो रहा है कि ज्ञान और ज्ञेय के समान ही शब्द और अर्थ में परस्पर में वाच्य वाचक सम्बन्ध होता है उस सम्बन्ध के कारण ही "घट" यह दो अक्षर वाला शब्द कंबुग्रीवादि से विशिष्ट पदार्थ को कहता है और यह कम्बु आदि आकार से विशिष्ट घट पदार्थ भी उक्त शब्द द्वारा अवश्य ही वाच्य होता है (कहने में आ जाता है) तथा शब्द द्वारा पदार्थ में बार बार संकेत भी किया जाता है कि यह मोल ग्रीवादि आकार वाला पदार्थ घट है इसको घट कहना, घट ऐसा होता है इत्यादि। इस प्रकार शब्द और अर्थ की सहज योग्यता और संकेत ग्रहण इन दो कारणों से शब्द द्वारा पदार्थ का बोध होता है।
इस तरह शब्द की योग्यता के होने पर संकेत होता है और संकेत से शब्दादिक वस्तु के प्रतीति में हेतु हो जाते हैं।
यथा मेर्वादयः सन्ति 101॥
सूत्रार्थ- जैसे मेरूपर्वत आदि पदार्थ हैं ऐसा कहते ही आगमोक्त मेरूपर्वत की प्रतीति हो जाया करती है।
143. मीमांसक- यह सहज योग्यता अनित्य है या नित्य? अनित्य है ऐसा तो कह नहीं सकते क्योंकि अनवस्था दूषण आता है। कैसे? वह बताते हैं-प्रसिद्ध सम्बन्ध वाले “यह" इत्यादि शब्द द्वारा अप्रसिद्ध सम्बन्धभूत घट आदि शब्द का सम्बन्ध किया जायगा, पुनः उस शब्द का भी किसी अन्य प्रसिद्ध सम्बन्ध वाले शब्द द्वारा सम्बन्ध
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 183