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प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
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अथ षष्ठपरिच्छेदः प्रमाणाभासविमर्शः
अथेदानीं तदाभासस्वरूपनिरूपणायततोऽन्यत्तदाभासम् ॥ इत्याद्याह।
1. प्रतिपादितस्वरूपात्प्रमाणसंख्याप्रमेयफलाद्यदन्यत्तत्तदाभासमिति। तदेव तथाहीत्यादिना यथाक्रमं व्याचष्टे। तत्र प्रतिपादितस्वरूपात्स्वार्थव्यवसायात्मकप्रमाणादन्ये
षष्ठ परिच्छेद प्रमाणाभास स्वरूप विमर्श
अब यहाँ पर प्रमाणाभास, संख्याभास, विषयाभास और फलाभास का वर्णन करते हैं
ततोऽन्यत्तदाभासम्॥1॥
सूत्रार्थ- पहले जिनका वर्णन किया था ऐसे प्रमाणों का तथा उनकी संख्या, विषय एवं फल इन चारों का जो स्वरूप बताया उससे विपरीत स्वरूप वाले प्रमाणाभास संख्याभास आदि हुआ करते हैं, अर्थात् प्रमाण का स्वरूप स्व-पर का निश्चय करना है इससे विपरीत स्वरूपवाला प्रमाणाभास कहलाता है।
1. प्रमाण की संख्या प्रमुख रूप से दो हैं इससे कम अधिक संख्या मानना संख्याभास है। प्रमाण का विषय सामान्य विशेषात्मक वस्तु है उसमें अकेला सामान्यादि को विषय बताना विषयाभास है। प्रमाण का फल प्रमाण से कथंचित् भिन्न तथा कथंचित् अभिन्न होता है उससे