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एवं शब्दार्थसम्बन्धेप्येतद्वाच्यम् स हि न तावदनाश्रित: नभोवदनाश्रितस्य सम्बन्धत्वाऽसम्भवात् । आश्रितश्चेत्किं तदाश्रयो नित्यः, अनित्यो वा ? नित्यश्चेत्; कोयं नित्यत्वेनाभिप्रेतस्तदाश्रयो नाम? जाति: व्यक्तिव? न तावज्जातिः; तस्याः शब्दार्थत्वे प्रवृत्याद्यभावप्रतिपादनात् निराकरिष्य
माणत्वाच्च ।
146. व्यक्तेस्तु तदाश्रयत्वे कथं नित्यत्वमनभ्युपगमात्तथाप्रतीत्यभावाच्च । अनित्यत्वे च तदाश्रयत्वस्य सिद्धं तद्व्यपाये सम्बन्धस्यानित्यत्वं पड़ता है हम प्रत्यक्ष से देखते हैं हस्तादि के इशारे अनित्य रहते हैं तो भी अर्थ की प्रतिपत्ति होती है। इसी हस्त संज्ञा का न्याय शब्द और अर्थ के सम्बन्ध में लगाना चाहिये, शब्द और अर्थ का सम्बन्ध अनाश्रित तो हो नहीं सकता क्योंकि आकाश के समान अनाश्रित वस्तु का सम्बन्ध होना असम्भव है।
अब यदि यह शब्दार्थ सम्बन्ध आश्रित है तो प्रश्न होगा कि उसका आश्रय नित्य है या अनित्य है? शब्दार्थ सम्बन्ध का आश्रय नित्य है ऐसा कहे तो नित्यरूप से अभिप्रेत ऐसा यह शब्दार्थ सम्बन्ध का आश्रय कौन हो सकता है जाति (सामान्य) या व्यक्ति (विशेष) ? वह आश्रय जाति रूप तो हो नहीं सकता, क्योंकि शब्द और अर्थ में जाति की प्रवृत्ति आदि नहीं होती ऐसा पहले सिद्ध हो चुका है तथा आगे चौथे परिच्छेद में (तृतीय भाग में) इस जाति अर्थात् सामान्य का निराकरण भी करने वाले हैं।
146. शब्दार्थ के सम्बन्ध का आश्रय व्यक्ति है ऐसा दूसरा पक्ष माने तो उस सम्बन्ध को नित्य रूप किस प्रकार कह सकते हैं? क्योंकि आपने व्यक्ति को (विशेष को) नित्य माना ही नहीं और नित्यरूप से उसकी प्रतीति ही होती है। व्यक्ति अनित्य ही है अतः उसके आश्रित रहने वाला उक्त सम्बन्ध भी अनित्य सिद्ध होता है जैसे कि भित्ति के अनित्य होने से तदाश्रित चित्र भी अनित्य होता है। इस प्रकार शब्दार्थ सम्बन्ध अनित्य है ऐसा निश्चय हुआ। इसलिये परवादी का निम्न कथन असत् होता है कि
प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार 185