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3/87-89 अस्मिन्प्राणिनि व्याधिविशेषोस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धः ॥87॥
129. आमयो हि व्याधिः, तेन विरुद्धस्तदभावः, तत्कार्या विशिष्टचेष्टा तस्या अनुपलब्धिर्व्याधिविशेषास्तित्वानुमानम्।
विरुद्धकारणानुपलब्धिर्यथाअस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात् ॥88॥
130. दुःखेन हि विरुद्धं सुखम्, तस्य कारणमभीष्टार्थेन संयोगः, तदभावस्तदनुपलब्धिर्दु:खास्तित्वं गमयतीति।
विरुद्धस्वभावानुपलब्धिर्यथाअनेकान्तात्मकं वस्त्वेकान्तानुपलब्धेः ॥89॥
विरुद्धकार्यानुपलब्धि हेतु का उदाहरणअस्मिन् प्राणिनि व्याधिविशेषोऽस्ति निरामयचेष्टानुपलब्धेः ॥87॥
सूत्रार्थ- जैसे इस प्राणी में रोग विशेष है क्योंकि निरोग के समान चेष्टा नहीं करता।
___ 129. आमय रोग को कहते हैं। उस आमय के विरुद्ध उसका अभाव निरामय कहलाता है। निरामय अवस्था का कार्य विशिष्ट चेष्टा है उसकी अनुपलब्धि होने से रोग के अस्तित्व का अनुमान लग जाता
विरुद्ध कारणानुपलब्धि हेतु का उदाहरणअस्त्यत्र देहिनि दुःखमिष्टसंयोगाभावात् ॥88॥ सूत्रार्थ-इस जीव में दुःख है क्योंकि इष्ट संयोग का अभाव है।
130. दु:ख के विरुद्ध सुख होता है और उसका कारण अभीष्ट पदार्थ का संयोग है उस संयोग का अभाव होने से दुःख का अस्तित्व जाना जाता है।
विरुद्धस्वभावानुपलब्धि हेतु का उदाहरण
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 169