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तच्च व्याप्तिज्ञानं तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिभ्यां प्रवर्त्तत इत्युपदर्शयतिइदमस्मिन्नित्यादि।
इदमस्मिन् सत्येव भवति असति तु न भवत्येवेति ॥12॥
47. इदं साधनत्वेनाभिप्रेतं वस्तु, अस्मिन्साध्यत्वेनाभिप्रेते वस्तुनि सत्येव सम्भवतीति तथोपपत्तिः। अन्यथा साध्यमन्तरेण न भवत्येवेत्यन्यथानुपपत्तिः। वाशब्द उभयप्रकारसूचकः।
यहाँ तर्क प्रमाण के निमित्त का प्रतिपादन करते हुए प्रभाचन्द्राचार्य ने सबसे पहले यह बताया कि- साध्य साधन के व्याप्ति का ज्ञान केवल प्रत्यक्ष निमित्तक नहीं है अपितु आप्त' पुरुष के वाक्यों को सुनकर और अनुमान द्वारा भी व्याप्ति ज्ञान होता है। यदि साध्य साधन के अविनाभाव का निश्चय केवल प्रत्यक्ष द्वारा होना माना जाये तो अतीन्द्रिय रूप साध्य साधन का अविनाभाव ज्ञात नहीं हो सकेगा।
इस पुरुष के पुण्य का सद्भाव पाया जाता है, क्योंकि विशिष्ट सुखादि की अन्यथानुपपत्ति है। सूर्य के गमन शक्ति का अविनाभाव भी प्रत्यक्ष व गम्य नहीं होता। अतः जो परवादी व्याप्ति का ग्रहण केवल प्रत्यक्ष द्वारा होना मानते हैं वह असत् है। तर्क में स्मरणादि ज्ञान भी निमित्त हुआ करते हैं, यदि साध्य साधन के अविनाभाव का ज्ञान विस्मृत हो जाय तो तर्क प्रमाण प्रवृत्त नहीं होता प्रत्यभिज्ञान भी इस ज्ञान में निमित्त होता है किन्तु मुख्य कारण उपलम्भ अनुपलम्भ है यही गुरुओं का अभिप्राय है।
अब यहाँ पर आचार्य तर्क प्रमाण की प्रवृत्ति तथोपपत्ति और अन्यथानुपपत्ति द्वारा होती है ऐसा प्रतिपादन करते हैं
इदमस्मिन् सत्येव भवति असति तु न भवत्येवेति च ॥2॥
सूत्रार्थ- यह इसके होने पर ही होता है और नहीं होने पर नहीं होता।
___47. 'इदम्' इस पद से साधन रूप से अभिप्रेत वस्तु का ग्रहण होता है तथा 'अस्मिन्' इस पद से साध्य रूप से अभिप्रेत वस्तु का ग्रहण
प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 97