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तृतीयपरिच्छेदः अथ परोक्षोद्देशः
परोक्षप्रमाणविमर्शः अथेदानीं परोक्षप्रमाणस्वरूपनिरूपणाय
परोक्षमितरत् ॥ 1. इत्याह। प्रतिपादितविशदस्वरूपविज्ञानाद्यदन्यदऽविशदस्वरूपं विज्ञानं तत्परोक्षम्। तथा च प्रयोग:-अविशदज्ञानात्मक परोक्षं परोक्षत्वात्। यन्नाऽविशदज्ञानात्मक तन्न परोक्षम् यथा मुख्येतरप्रत्यक्षम्, परोक्षं चेदं वक्ष्यमाणं विज्ञानम्, तस्मादविशदज्ञानात्मकमिति।
तृतीय परिच्छेद परोक्ष प्रमाण विमर्श
अब यहाँ पर श्रीमाणिक्यनन्दी आचार्य परोक्ष प्रमाण के स्वरूप का सूत्रबद्ध निरूपण करते हैं
परोक्षमितरत् ॥ सूत्रार्थ- उस विशद ज्ञान (प्रत्यक्ष) से जो भिन्न है, अर्थात् अविशद है, उसे परोक्ष प्रमाण कहते हैं।
1. पहले प्रत्यक्ष प्रमाण का लक्षण कहा था उससे पृथक् लक्षण वाला परोक्ष प्रमाण होता है। विशद ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है ऐसा प्रतिपादन कर चुके हैं- उससे अन्य अर्थात् अविशद ज्ञान परोक्ष प्रमाण है। इसी को अनुमान प्रयोग द्वारा बतलाते हैं- परोक्ष प्रमाण अविशद ज्ञान रूप है, क्योंकि वह परोक्ष है, जो अविशद ज्ञान रूप नहीं है वह परोक्ष नहीं कहलाता है, जैसे- मुख्य परोक्ष और सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष प्रमाण, परोक्ष नहीं कहलाता है, यह वक्ष्यमाण ज्ञान परोक्ष है, अतः अविशद ज्ञान रूप है। उस परोक्ष प्रमाण के कारण और भेद अगले सूत्र में कहते हैं74:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः