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(xrvii) (3) तृतीय समुद्देश
इसमें कुल 97 सूत्र हैं जिनमें परोक्ष प्रमाण, उसके भेद-प्रभेदों का विस्तार से वर्णन है। (4) चतुर्थ समुद्देश
इसमें 9 सूत्रों के माध्यम से प्रमाण के सामान्य-विशेष उभय रूप विषय की सिद्धि करते हुए सामान्य और विशेष के दो-दो भेदों का उदाहरण सहित प्रतिपादन किया गया है। (5) पञ्चम समुद्देश
इसमें मात्र 3 सूत्रों के माध्यम से प्रमाण के फल को बतलाकर प्रमाण और प्रमाण के फल में कथञ्चित् भिन्नता और अभिन्नता का प्रतिपादन किया है। (6) षष्ठ समुद्देश
इसमें 74 सूत्रों के माध्यम से सारे प्रमाणाभासों का विशद वर्णन किया गया है।
परीक्षामुख ग्रन्थ पर टीकाएँ
जिस प्रकार प्रथम शताब्दी के आचार्य उमास्वामी द्वारा तत्त्वार्थसूत्र की रचना के उपरान्त उस पर सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक आदि अनेक टीकाओं का प्रणयन जैनाचार्यों द्वारा किया गया, उसी प्रकार आचार्य माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुखसूत्र ग्रन्थ का प्रणयन किया तो परवर्ती आचार्यों पर गहरा प्रभाव पड़ा और इसी के आधार पर अनेक नये नये टीका एवं मौलिक ग्रन्थों की रचना की गई। ___इस ग्रन्थ पर अनेक आचार्यों द्वारा लिखित टीकाएँ अपने आपमें अनूठी तथा स्वतन्त्र ग्रन्थ जैसी हैं, इनमें जो विषय आये हैं वह उन उन आचार्यों का योगदान तो माना ही जाता है किन्तु उन्हें उन विषयों पर विचार करने हेतु विवश करने वाले परीक्षामुख ग्रन्थ और उसके कर्त्ता आचार्य माणिक्यनन्दि का विशिष्ट अवदान माना जायेगा, जिन्होंने इसमें