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2/11 न, ब्रूमः-कारणं परिच्छेद्यमेव किन्तु 'कारणमेव परिच्छेद्यम्' इत्यवधारयामः;
32. तन्न; योगिविज्ञानस्य व्याप्तिज्ञानस्य चाशेषार्थग्राहिणोऽभावप्रसङ्गात्। न हि विनष्टानुत्पन्नाः समसमयभाविनो वास्तस्य कारणमित्युक्तम्। केशोण्डुकादिज्ञानस्य चाजनकार्थग्राहित्वाभावप्रसङ्गः। कथं च कारणत्वाविशेषेपीन्द्रियादेरग्रहणम? अयोग्यत्वाच्चेतः योग्यतैव तर्हि प्रतिकर्म
कारणस्य च परिच्छेद्यत्वे करणादिना व्यभिचारः ॥11॥
सूत्रार्थ- (ज्ञान के) कारण को परिच्छेद्य (ज्ञेय) मानने पर करण (इन्द्रियाँ) के साथ व्यभिचार दोष आयेगा। जो ज्ञान का कारण है वही ज्ञान के द्वारा जाना जाता है- ऐसा मानेंगे तो इन्द्रियों के साथ व्यभिचार दोष आता है।
32. चक्षु आदि इन्द्रियाँ एवं अदृष्ट आदिक ज्ञान के कारण तो हैं किन्तु ज्ञान द्वारा परिच्छेद्य (जानने योग्य) नहीं हैं, अतः जो ज्ञान का कारण है वही जानने योग्य है ऐसा कहना व्यभिचरित होता है।
बौद्धों का कहना है कि जो ज्ञान का कारण है वह अवश्य ही परिच्छेद्य हो ऐसा नियम नहीं है, किन्तु जो भी जाना जाता है वह कारण होकर ही जाना जाता है।
समाधान- आप इस तरह भी नहीं मान सकते, क्योंकि ऐसा अवधारण करने पर भी अशेषार्थ ग्राही योगी का ज्ञान एवं व्याप्ति ज्ञान इन ज्ञानों का अभाव हो जायेगा, इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-जो पदार्थ नष्ट हो चुके हैं जो अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं, जो समकालीन हैं ये सब पदार्थ ज्ञान के कारण नहीं हैं (किन्तु) योगी का ज्ञान इन सबको जानता अवश्य है अतः जो ज्ञान का कारण है वही उसके द्वारा जाना जाता है ऐसा कहना गलत होता है। केशोण्डुक (बालों के ऊपर मच्छर) ज्ञान में भी पदार्थ (मच्छर) कारण नहीं है वह तो पदार्थ से अजन्य है, उस ज्ञान में जो अजनकार्थ ग्राहीपना देखा जाता है वह भी नहीं रहेगा।
जो ज्ञान का कारण है उसको ज्ञान जानता है तो चक्षु आदि इन्द्रियों को ज्ञान क्यों नहीं जानता इस बात को परवादी को बताना चाहिए? आप कहो कि इन्द्रियों में ज्ञान द्वारा ग्राह्य होने की योग्यता नहीं
प्रमेयकमलमार्तण्डसार:: 69