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प्रथम-परिच्छेद ]
__ [ १७ मनक पिता स्थविर प्रार्य शय्यम्भव के शिष्य तुंगियायनसगोत्र आर्य यशोभद्र हुए ।२०५'
'इसके आगे स्थविरावली दो प्रकार की देखने में पाती है : एक संक्षिप्त और दूसरी विस्तृत, पहले संक्षिप्त स्थविरावली दी जा रही है :
"संखित्तवायरणाए प्रज्जजसभद्दामो अग्गो एवं थेरावली भणिया तं जहा-थेरस्स णं अज्जजसभहस्स तुंगियायरणसगोतस्स अंतेवासी दुवे थेराथेरे प्रज्जसंभूयविजए माढरसगोते, थेरे अन्जभहवाहू पाईरणसगोत्ते, थेरस्स णं प्रज्जसंभूयविजयस्स माढरसगोत्तस्स अंतेवासी प्रज्जथूलभद्दे थेरे गोयमसगोत्ते, थेरस्स रणं अज्जथूलभद्दस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी-दुवे थेरा-थेरे प्रज्जमहागिरी, एलावच्छसगोत्ते, थेरे अज्जसुहत्यी वासिट्ठसगोत्ते, थेरस्स रणं प्रज्जसुहत्थिस्स वासिट्टसगोत्तस्स अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्टिय-सुपडिबुद्धा कोडियकाकंदगा-वाघावच्चसगोता। थेरारणं सुट्टिय-सुपडिबुद्धाणं कोडिय-काकदगाणं वग्घावच्चसगोत्तारणं अंतेवासी थेरे अज्जईददिने कोसियगोते ॥" _ 'संक्षिप्त वाचना से प्रार्य यशोभद्र के प्रागे की स्थविरावली इस प्रकार कहो है : यथा तुंगियायणसगोत्र स्थविर यशोभद्र के दो स्थविर शिष्य थे : माठरसगोत्रीय स्थविर संभूत विजय और प्राचीन-सगोत्र स्थविर भद्रबाहु, स्थविर प्रार्य संभूतविजय के स्थविर शिष्य गोलम सगोत्र प्रार्य स्थूलभद्र हुए, स्थविर स्थूलभद्र के स्थविर शिष्य दो हुए, स्थविर एलावत्मसगोत्रीय आर्य महागिरि और वासिष्टसगोत्र आर्य सुहस्ती। स्थविर सुहस्ती के स्थविर शिष्य दो हुए : स्थविर सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध, गृहस्थाश्रम में सुस्थित स्थविर कोटिवर्ष नगर के निवासी होने से कोटिक कहलाते थे और सुप्रतिबुद्ध गृहस्थाश्रम में काकन्दीनगरी निवासी होने से काकन्दक नाम से प्रसिद्ध हुए थे। ये दोनों स्थविर व्याघ्रापत्यसगोत्र थे, इन दोनों स्थविरों के स्थविर शिष्य कौशिकगोत्रीय ‘इन्द्रदिन्न' थे ।'
"थेरस्स रणं प्रज्जइंददिन्नस्स कोसियगोत्तस्स अंतेवासी थेरे प्रज्जदिन्न गोयमसगोत्ते, थेरस्स णं अज्जदिन्नस्स गोयमसगोत्तस्स अंतेवासी थेरे प्रज्जसीहगिरी जाइस्सरे कोसियगोत्ते, थेरस्स रणं अज्जसिंहगिरिस्स जातिसरस्स
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