________________
गाथा-४४
विगत गाथा में कहा है कि ह्र आत्मवस्तु का ज्ञानगुण से पृथक्करण नहीं किया जा सकता; क्योंकि दोनों एक ही अस्तित्व से रचित हैं। न केवल एक ही अस्तित्व से रचित हैं, बल्कि दोनों के द्रव्य-क्षेत्र-काल भाव भी एक ही हैं। ऐसी एकता होने पर भी ज्ञान की संज्ञा, संख्या, लक्षण तथा मति-श्रुतज्ञान आदि की अपेक्षा अनेकरूपता है।
प्रस्तुत गाथा में यह कहते हैं कि ह्र द्रव्य का गुणों से भिन्नत्व और गुणों का द्रव्य से भिन्नत्व होने पर क्या दोष आता है?
मूलगाथा इस प्रकार है ह्र जदि हवदि दव्वमण्णं गुणदो य गुणा य दव्वदो अण्णे। दव्वाणंतियमधवा दव्वाभावं पकुव्वंति ।।४४।।
(हरिगीत) द्रव्य गुण से अन्य या गुण अन्य माने द्रव्य से।
तो द्रव्य होय अनंत या फिर नाश ठहरे द्रव्य का ॥४४|| “यदि द्रव्य गुणों से अन्य (भिन्न) हो और गुण द्रव्य से अन्य (भिन्न) हों तो या तो द्रव्य की अनन्तता का प्रसंग प्राप्त होगा या फिर द्रव्य के अभाव का प्रसंग प्राप्त होगा, जो संभव नहीं है। ___आचार्य अमृतचन्द्र इसकी टीका में कहते हैं कि ह्र यदि द्रव्य का गुणों से सर्वथा भिन्नत्व मानोगे और गुणों का द्रव्य से सर्वथा भिन्नत्व मानोगे तो जो दोष आता है, उस दोष का उल्लेख इस गाथा में किया है।
गुण वास्तव में द्रव्य के आश्रय होते हैं। यदि वह द्रव्य गुणों से भिन्न हो तो फिर गुण किसके आश्रित होंगे? वे गुण जिसके आश्रित होंगे वह भी तो द्रव्य ही है। इसतरह तो अनवस्था दोष का प्रसंग प्राप्त होगा।
जीव द्रव्यास्तिकाय (गाथा २७ से ७३)
१७५ वास्तव में द्रव्य गुणों का ही समुदाय है। गुण यदि अपने समुदाय से अन्य हों तो वह समुदाय कैसा? इसप्रकार यदि गुणों का द्रव्य से भिन्नत्व हो तो या तो द्रव्यों को अनन्तता का प्रसंग प्राप्त होगा या द्रव्य के अभाव का प्रसंग प्राप्त होगा। इस कारण सर्वथा प्रकार से गुण-गुणी का भेद नहीं है। कथंचित् प्रकार से भेद है। गुण अंश है, द्रव्य अंशी है, किन्तु अंश से अंशी अलग नहीं हो सकता । अंशी के आश्रय ही अंश रहते हैं।
द्रव्य से गुण को सर्वथा भिन्न मानोगे तो द्रव्य का अभाव होगा; क्योंकि गुणों के समूह को ही तो द्रव्य कहते हैं। कहा भी है गुण समुदायो द्रव्यं द्रव्य से गुण सर्वथा भिन्न नहीं है।" ___ आचार्य जयसेन के अनुसार ह्न यदि द्रव्यगुणों से सर्वथा अन्य हो तो एकद्रव्य में भेद उत्पन्न हो जायेगा । गुण अंश हैं, गुणी अंशी है। अंश से अंशी अलग नहीं हो सकता । अंशी के आश्रय से ही अंश रहते हैं। दूसरा दोष यह आयेगा कि - द्रव्य का ही अभाव हो जायेगा; क्योंकि द्रव्य गुणों का समूह ही होता है। अतः सर्वथा गुण-गुणी भेद नहीं है। कविवर हीरानन्दजी काव्य के द्वारा कहते हैं ह्र
(दोहा) दरव आन गुण ते जबहिं, दरब थकी गुण आन।
तबही दरब अनन्तता, अथवा दरव न जान ।।२२७।। यदि द्रव्य गुणों से अन्य हो या गुण द्रव्य से अन्य हों तो या तो द्रव्य में अनन्तता सिद्ध होगी या फिर द्रव्यों के नाश का प्रसंग प्राप्त होगा।
(सवैया) गुन द्रव्य आश्रय हैं, आश्रयी कहावै द्रव्य,
दोनों हैं अविनाभावी, जुदा कौन गनै है?
(96)
१. पंचास्तिकाय पृष्ठ-८८, प्रकाशन १९५८ पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर