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गाथा-७५ विगत गाथा में कहा है कि ह्र पुद्गलकाय के चार भेद हैं ह्र (१) स्कंध, (२) स्कंधदेश, (३) स्कंध प्रदेश और (४) परमाणु ।
अब प्रस्तुत गाथा में पुद्गलकाय के पूर्वोक्त चार भेदों का विशेष कथन करते हैं ह्र मूलगाथा इसप्रकार है ह्र
खधं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी।।७५।।
(हरिगीत) स्कन्ध पुद्गलपिंड है, अर अर्द्ध उसका देश है। अर्धार्द्ध को कहते प्रदेश, अविभागी अणु परमाणु है।।७३|| समस्त पुद्गल पिण्डात्मक वस्तु स्कन्ध है, उसके आधे को देश कहते हैं। आधे से भी आधे को प्रदेश कहते हैं एवं वस्तु के अविभागी अंश को परमाणु कहते हैं।
आचार्य अमृतचन्द टीका में कहते हैं कि ह्र यह पुद्गलद्रव्य के भेदों का वर्णन है।
अनन्तानन्त परमाणुओं से निर्मित होने पर भी जो एक हो, वह स्कन्ध नामक पर्याय है; उसकी आधी स्कंधदेश नामक पर्याय है, आधी की आधी स्कन्धप्रदेश नामक पर्याय है। इसप्रकार भेद के कारण (पृथक होने के कारण) द्विअणुक स्कन्ध पर्यन्त अनन्त स्कन्ध प्रदेश रूप पर्यायें होती हैं । निर्विभाग एक प्रदेशवाले स्कन्ध का अन्तिम अंश एक परमाणु है।
इस गाथा की टीका में जयसेनाचार्य स्कन्ध, देश, प्रदेश व परमाणुओं की दो प्रकार से व्याख्या करते हैं। प्रथम तो उन्होंने कहा कि ह्र अनंत परमाणु पिण्डता का घट-पट आदि रूप जो विवक्षित सम्पूर्ण वस्तु है उसे स्कन्ध संज्ञा है। भेद द्वारा उसके जो पुद्गल विकल्प होते हैं उन्हें निम्नोक्त दृष्टान्त से समझना।
पुद्गल द्रव्यास्तिकाय (गाथा ७४ से ८२)
मानलो कि ह्र १६ परमाणुओं से निर्मित एक स्कन्ध है अर्थात् पुद्गलपिण्ड है और वह छूटकर उसके टुकड़े होते हैं तो ८ परमाणुओं वाला टुकड़ा देश कहायेगा। ४ परमाणुओं वाला टुकड़ा (चतुर्थ भाग टुकड़ा) प्रदेश है और अविभागी छोटे से छोटा टुकड़ा परमाणु हैं। ___पुनश्च, जिसप्रकार १६ परमाणु के पूर्ण पिण्ड को यदि स्कन्ध संज्ञा है तो १५ से ९ परमाणुओं तक के किसी भी टुकड़े की भी स्कन्ध संज्ञा है। तथा ८ परमाणुवाले उसके अर्द्ध भाग के टुकड़े को, 'देश' संज्ञा है तो ७ से ५ तक के परमाणु को (टुकड़े) को भी देश संज्ञा ही होगी। ___ इसीप्रकार ४ परमाणु वाले उसके चतुर्थ भाग रूप टुकड़े को प्रदेश संज्ञा है तो उसे लेकर २ परमाणु तक के किसी भी टुकड़े की प्रदेश संज्ञा है। कवि हीरानन्दजी कहते हैं कि ह्र
(दोहा) सकल वस्तु का खंध है, तिसका आधा देस । चौथाई परदेस है, परमानू निरवेस ।।३३७।।
(सवैया इकतीसा ) पुग्गल अनंतानंत भेद संघात वसते,
___ भाग बिना एक कोई खंधनाम सार है। तामै चार भेद कहै खंध नाम सारा रूप,
ताका आधा देस नाम प्रगट विचार है।। आधा देस आधा होइ परदेस नामी सोइ,
अनू नाम अविभागी चौथा परकार है। एई चारों भेद एक पुग्गल अभेद रूप, इनहीं का जहाँ तहाँ जग में विथार है।।३३८ ।।
(दोहा) जिनवानी मैं भेद बहु कहवत अगम अपार । सुलपमति के कारण कहे चार परकार ।।३३९।।
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