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पञ्चास्तिकाय परिशीलन (दोहा) अपनी भूल अनादित, परा जगतमैं आप।
आपा-पर न पिछानई, सहत बहुत परिताप।।४२।। कवि कहते हैं कि ह्र जुआ, कुंभी, मकड़ी, चींटी, मकड़ी आदि तीन इन्द्रिय जीव हैं, जो नामकर्म के उदयाधीन होकर जग जन्म-मरण करते हैं। ऐसे दुःखी जीवों को देखकर जो इन पर दया नहीं करते वे इसी तरह के दुःख में पड़ते हैं। अतः समय रहते जो स्व-पर विवेक नहीं करते तथा वस्तु स्वरूप को जानते वे ऐसे ही दुःखों में पड़ते हैं। ___इसी गाथा पर व्याख्यान करते हुए गुरुदेव श्री कानजीस्वामी ने कहा है कि ह्र जूं, मकड़ी, बिच्छू, चींटी वगैरह जीवों के स्पर्शन रसना व घ्राण ह्र ये तीन इन्द्रियाँ हैं। इससे इन्हें आगम में तीन इन्द्रिय जीव कहा है।
श्रीमद् जयसेनाचार्य संस्कृत टीका में प्रश्न उठाते हुए कहते हैं कि ह्र इन जीवों को त्रिइन्द्रियपना कैसे प्राप्त हुआ?
उत्तर में वे ही कहते हैं कि ह्र आत्मा का स्वभाव विशुद्ध ज्ञानदर्शनमय हैं, जिसे ऐसे शुद्धात्म स्वरूप का भान नहीं है तथा स्पर्श, रस, गंध के विषयों में लोलुपता होती है, वे जीव वीतराग आनन्द से च्युत होकर तीन इन्द्रिय आदि में उत्पन्न हो जाते हैं। जिन लोगों को ऐसे दीनहीन जीवों को देख दया नहीं आती, वे भी कालान्तर में उन्हीं पर्यायों में जन्म लेकर अनंत दुःख भोगते हैं।" ___सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि स्पर्शन, रसना एवं घ्राण जिनके ये तीन इन्द्रियाँ हैं, वे तीन इन्द्रिय जीव हैं तथा इन तीन इन्द्रियों के विषय में आसक्त होते हैं तथा जो इन पर दया नहीं करते वे सभी जीव इन पर्यायों में जाते हैं। अतः हमें इन दोनों स्थितियों से बचना चाहिए।
गाथा -११६ विगत गाथा में यह ज्ञान कराया है कि जो स्पर्श, रस, गंध में अति आसक्त होते हैं, तथा उनके विषयों में आशक्त रहते हैं वे त्रैइन्द्रिय होते हैं।
अब प्रस्तुत गाथा में चौ इन्द्रिय जीवों के विषय में बताते हैं। मूल गाथा इसप्रकार है ह्र उद्दसमसयमक्खियमधुकरिभमरा पयंगमादीया। रूवं रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणंति।।११६।।
(हरिगीत) मधुमक्खी भ्रमर पतंग आदि डांस मच्छर जीव जो।
वे जानते हैं रूप को भी अतः चौइन्द्रिय कहें।।११६।। डांस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, भंवरा और पतंगे आदि जो जीव रूप, रस, गंध और स्पर्श को जानते हैं, वे चतुरिइन्द्रिय जीव हैं।
आचार्यश्री अमृतचन्द्र टीका में कहते हैं कि ह्र स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा श्रोत्रेन्द्रिय एवं मन के आवरण का उदय होने से स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण को जानने वाले डांस आदि जीव मनरहित चतुरिन्द्रिय जीव हैं।
(दोहा) डांस मसक माखी विरडि, भ्रांगी भ्रमर पतंग । रूप गंध रस फरस फुनि, जानत विषय प्रसंग।।४३।।
(सवैया इकतीसा) निर्विकार ग्यान-सुख-सुधारस-पान बिना,
बाहिर सुखी है जीव इंद्रियाभिलाषी है। ताते चौरिंद्रिय-जाति-नामकर्म बंध करै,
ताहीकै उदय माहिं आप दृष्टि राखी है।। कारन एक इंद्री और मनकै विचार बिना,
सेष चारि इन्द्रीकरि स्वाद रीति चाखी है।
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१. श्रीमद् सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. १९०, दि. २९-४-५२, पृष्ठ-१५३१