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गाथा - १७३ विगत गाथा में साक्षात् मोक्षमार्ग का सार बताकर शास्त्र तात्पर्य का उपसंहार किया है।
प्रस्तुत अन्तिम गाथा में आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने प्रतिज्ञा पूर्ण करने का संकेत करते हुए ग्रन्थ के समापन की सूचना दी है।
मूल गाथा इसप्रकार है ह्र मग्गप्पभावणटुं पवयणभत्तिप्पचोदिदेण मया । भणियं पवयणसारं पंचत्थियसंगह सुत्तं ।।१७३।।
(हरिगीत) प्रवचनभक्ति से प्रेरित सदा यह हेतु मार्ग प्रभावना। दिव्यध्वनि का सार यह ग्रन्थ मुझसे है बना।।१७३|| प्रवचन की भक्ति से प्रेरित होकर मैंने मोक्षमार्ग की प्रभावना हेतु प्रवचन के सारभूत पंचास्तिकाय संग्रह सूत्र कहा है।
टीकाकार आचार्य श्री अमृतचन्द्र देव ने आचार्य श्री कुन्दकुन्द द्वारा की गई प्रतिज्ञा का उल्लेख करते हुए तथा उनके प्रति श्रद्धा का भाव प्रगट करके ग्रन्थ समाप्ति की घोषणा की। ___ अन्त में टीकाकार ने निम्नांकित पद्य द्वारा अपनी लघुता तथा अकर्तृत्व भाव व्यक्त करते हुए कहा ह्र
स्वशक्ति संसूचित वस्तु तत्वे, व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दैः। स्वरूप गुप्तस्य न किंचिदस्ति,
कर्तव्यमेवामृतचन्द सूरेः ।।८।। आचार्य अणूकचन्द्र कहते हैं कि ह्र "अपनी शक्ति प्रमाण मैंने वस्तु । का तत्त्व भलीभाँति कहा है तथा जिनवाणी के शब्दों में ही मैंने इस समय
अथ मोक्षमार्ग प्रपञ्च चूलिका (गाथा १७३)
५०५ व्याख्या अर्थात् “पंचास्तिकाय संग्रह" शास्त्र की टीका की है, स्वरूपगुप्त अमृतचन्द्र सूरि का इसमें किंचित् भी कर्तव्य नहीं है।' कवि हीरानन्दजी इसी भाव को काव्य में कहते हैं ह्र
(दोहा) मारग-परभावन निमित, प्रवचन-भगति-विनोद। अस्तिकाय-संग्रह कथन, प्रवचनसूत्र प्रमोद।।३११।।
(सवैया इकतीसा) परम वैराग्यकारी आग्या जिनराजकेरी,
आप माहिं जानी और उपदेस दीना है। परमरूप आगम-अनुराग-वेग बंध्या,
ताते वाक्यरचना यौं पूरा ग्रंथ कीना है।। वस्तुतत्त्व-सूचकतै द्वादसांगवानी-सार,
पंचासतिकाया नाम संग्रह नवीना है। सम्यक कारन है दोष का निवारन है, कुंदकुंदाचार जने आपा सोध लीना है।।३१२ ।।
(दोहा ) कुन्दकुन्द मुनिराज की, भई प्रतिग्या पूर। कहना था सो सब कहा, जो जिनसासन मूर ।।३१३।।
(दोहा ) सरव दरवमैं लसतु है, गुन-परजाय-सुभाव । पै तथापि न्यारा विकत, वरनन सुहित बढ़ाव ॥३१८ ।। मोखनगरकै पथिककौं, निपट निकट यह पंथ । गुन-परजैकरि दरव सब, जिनवानी-रसमंथ ।।३१९ ।।
(कुण्डलिया) जानपना' निज मुकत है, जानि सकै तौ जानि ।
जानपना जान्या नहीं, तो बहका भ्रम मानि ।। १. प्रभावना २. शोभित होता है
३. ज्ञायक स्वभाव
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