Book Title: Panchastikay Parishilan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 235
________________ गाथा - १५३ विगत गाथा में द्रव्य निर्जरा के हेतुभूत तथा परम निर्जरा के कारणभूत परमध्यान का कथन किया गया। अब प्रस्तुत गाथा में द्रव्यमोक्ष के स्वरूप का कथन है। मूल गाथा इसप्रकार है ह्र जो संवरेण जुत्तो णिज्जरमाणोध सव्वकम्माणि । ववगदवेदाउस्सो मुयदि भवं तेण सो मोक्खो ।।१५३।। (हरिगीत) जो सर्व संवर युक्त हैं अरु कर्म सब निर्जर करें। वे रहित आयु वेदनीय और सर्व कर्म विमुक्त हैं।।१५३।। जो संवर से युक्त है, ऐसा केवलज्ञानी जीव सर्व कर्मों की निर्जरा करता हुआ वेदनीय कर्म और आयुकर्म रहित होकर केवलज्ञानी सर्व कर्म पुद्गलों को एवं भव को छोड़ता है, वह उसका द्रव्य मोक्ष है। आचार्य श्री अमृतचन्द्र देव टीका में कहते हैं कि यह द्रव्यमोक्ष के स्वरूप का कथन है। “वास्तव में केवली भगवान को भाव मोक्ष होने पर परम संवर सिद्ध होने के कारण भावी कर्म परम्परा का निरोध होने पर, परम निर्जरा के कारणभूत ध्यान सिद्ध होने के कारण पहले की कर्म संतति की स्थिति कदाचित् वेदनी, नाम और गोत्र की स्थिति आयु कर्म से अधिक होने पर वह स्थिति घटकर आयुकर्म जितनी होने में केवली समुद्घात निमित्त बनता है। अपुनर्भव के लिए वह भव छूटने के समय होने वाला जो वेदनीय-आयु-नाम-गोत्र रूप कर्म पुद्गलों का जीव के साथ अत्यन्त वियोग होता है, वह द्रव्यमोक्ष है।" ध्यान सामान्य (गाथा १५२ से १५३) कवि हीरानन्दजी काव्य में इसी बात को इसप्रकार कहते हैं। (दोहा) जो संवर संजुत्त है सरव करम निजरेइ। आयु वेदना विगत सो, भवतजि मुकति करेइ।।१७९ ।। (सवैया इकतीसा) केवली जिनेसुर कै भाव मोख हुए सेती, आगामी कर्मरोध पुरा कर्म भगरा । ध्यान की प्रसिद्ध तातै निर्जरा सहज रूप, पूराकर्म संतति का नास होइ सगरा ।। कोई एक जीव विषै समुद्घात होने तैं, आयमान रहे वेद-नाम-गोत-रगरा। चौदह अजोगी अंत सर्व कर्म अन्त होइ, सिद्ध थान पावै जीव मिटै लाग झगरा।।१८०।। (दोहा) दरब मोख की विधि कही सिवसिधिसाधन हार। उपादेय सब कथन मैं, ग्यानी विष त्रिकार।।१८२ ।। कवि हीरानन्दजी के काव्यों का सारांश यह है कि ह्र जो संवर से सहित हैं, सब कर्मों की निर्जरा कर दी है, आयुकर्म, वेदनीय कर्म आदि आदि से रहित हो गये हैं वे सिद्ध जीव हैं। केवली भगवान के मोक्ष होने पर आगामी कर्मों का निरोध तथा पुराने कर्मों का क्षय होता है, ध्यान की सिद्धि होने से सम्पूर्ण पुराने कर्मों की निर्जरा सहज होती है। किन्हीं जीवों को समुद्घात होने से शेष अघाती कर्म की निर्जरा हो जाती है और मोक्ष हो जाता है।" । इसप्रकार द्रव्य मोक्ष की विधि बताई। मोक्षमार्ग में रत्नत्रय की सब प्रक्रिया पूर्ण हुई। ह. श्री मोक्ष पदार्थ व्याख्यान समाप्त .ह्न (235) १. नोट : इस १५३ गाथा पर गुरुदेव श्री कानजीस्वामी का व्याख्यान उपलब्ध नहीं है।

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