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गाथा-७६
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पञ्चास्तिकाय परिशीलन भेद और संघात के कारण पुद्गल के अनन्तानन्त भेद हैं। अर्थात् अणुओं एवं स्कन्धों के मिलने-बिछुड़ने की अपेक्षा पुद्गल के अनन्त भेद हो जाते हैं तथा दो या दो से अधिक परमाणुओं के मेल से स्कन्ध बनते हैं। ___पुद्गल पिण्ड के मुख्यतः चार भेद इसप्रकार हैं ह्न (१) स्कन्ध (२) देश (३) प्रदेश एवं (४) अणु । (१) स्कन्ध (२) स्कन्ध का आधा देश, (३) देश का आधा प्रदेश (४) प्रदेश का अविभागी अंश अणु होता है। जिनवाणी में स्कन्ध के बहुत भेद कहे हैं, परन्तु अल्प मतियों को स्थूलरूप से पुद्गल के उक्त चार ही प्रकार कहे हैं।
इसी बात को गुरुदेवश्री कानजीस्वामी कहते हैं कि ह्न (१) स्कन्ध पुद्गल के अनन्त परमाणुओं से बना हुआ एक पिण्ड है। यह दूसरों के द्वारा बनाया नहीं गया है। शरीर, वाणी कर्म के स्कन्ध की अवस्था जीव से नहीं होती। रोटी शाक आदि के स्कन्ध किसीसे हुए नहीं हैं, वे सब भिन्न हैं, स्वतंत्र हैं। "मैं पर का कर्त्ता नहीं हूँ। मैं तो मात्र ज्ञायक हूँ" ह्र ऐसा स्वयं को जानने पर परपदार्थ स्वयं ही जानने में आ जाते हैं।
(२) स्कन्धदेश : पुद्गल स्कन्ध का आधा भाग स्कन्ध देश है। (३) स्कन्धप्रदेश : स्कन्ध का चौथा भाग स्कन्ध प्रदेश हैं।
(४) परमाणु ह्न जिसके दो भाग नहीं हो सकें, उसे पुद्गलपरमाणु कहते हैं।" ___तात्पर्य यह है कि ह्न स्कन्ध, स्कन्धदेश एवं स्कन्धप्रदेश ह्र इन तीनों के अनन्त-अनन्त भेद हैं। यहाँ भेद की अपेक्षा से अनन्त की बात है। परमाणु में एक ही प्रकार है; यद्यपि परमाणु संख्या में अनन्त हैं, किन्तु भेद एक प्रकार का ही है।
विगत गाथा में कहा गया है कि ह्र पुद्गलकाय के चार भेद हैं ह्र (१) स्कंध, (२) स्कंधदेश, (३) स्कंध प्रदेश और (४) परमाणु ।
अब प्रस्तुत गाथा में पुद्गल के छ: भेदों को कहते हैं। मूलगाथा इसप्रकार है ह्र बादरसुहमगदाणं खंधाणं पोग्गलो त्ति ववहारो। ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहिं णिप्पण्णं ।।७६।।
(हरिगीत) सूक्ष्म-बादर परिणमित स्कन्ध को पुद्गल कहा। स्कन्ध के षट्भेद से त्रैलोक्य यह निष्पन्न है ||७६।। बादर और सूक्ष्मरूप से परिणत स्कन्धों को पुद्गल कहने का व्यवहार है। वे छह प्रकार के हैं, जिनसे तीन लोक निष्पन्न है।
आचार्य अमृतचन्द्र समयव्याख्या टीका में कहते हैं कि ह (१) जिनमें संख्यात, असंख्यात, अनन्त आदि षट्स्थान पतित वृद्धि-हानि होती है ह्न ऐसे स्पर्श, रस, गंध, वर्णरूप गुण विशेषों के कारण पूरण-गलन धर्मवाले होने से तथा स्कन्ध पर्याय के आविर्भाव और तिरोभाव की अपेक्षा भी परमाणुओं में पूरण-गलन स्वभाव घटित होने से परमाणु निश्चय से पुद्गल है। कवि हीरानन्दजी गाथा के उक्त भाव को इसप्रकार कहते हैं ह्र
(दोहा) बादर सूच्छिम खंध हैं, तिनका पुद्गल नाम । छह प्रकार तिनकौं कहत, तीन लोक अभिराम ।।३४०।।
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१. श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. १६६, पृष्ठ-१३१३, दिनांक ६-४-५२