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गाथा-६४ विगत गाथा में प्रश्न किया गया है कि ह्र यदि कर्म कर्म को करे और आत्मा आत्मा को करे, दोनों अपना-अपना कार्य करते हैं तो कर्म आत्मा को फल क्यों देगा? और आत्मा उसका फल क्यों भोगेगा? अब इस गाथा में समाधान करते हैं। मूल गाथा इसप्रकार है ह्र
ओगाढगाढणिचिदो पोग्गलकाएहिं सव्वदो लोगो। सुहमेहिं बादरेहिं य णंताणंतेहिं विविधेहिं ।।६४।।
(हरिगीत) करम पुद्गल वर्गणायें अनन्त विविध प्रकार कीं। अवगाद-गाद-प्रगाढ़ हैं सर्वत्र व्यापक लोक में ||६४|| तीनों लोक सर्वत्र विविध प्रकार के अनन्तान्त सूक्ष्म और बादर पुद्गलकाय से अवगाहित होकर भरा हुआ है।
आचार्य अमृतचन्द्र टीका में ऐसा कहते हैं कि ह्र कर्मयोग्य पुद्गल अर्थात् कार्माणवर्गणारूप पुद्गलस्कन्ध अंजनचूर्ण से भरी हुई डिब्बी की भाँति समस्त लोक में व्याप्त हैं, इसलिए जहाँ आत्मा है वहाँ कहीं से लाये बिना वे पुद्गलस्कन्ध स्थित हैं । अतः बिना किए परस्पर निमित्त-नैमित्तिक भाव से कर्म का फल भोगेंगे।।६४ ।। इसी बात को कवि हीरानन्दजी कहते हैं ह्र
(दोहा) सूक्ष्मबादर भेद करि, नंतानन्त प्रकार । विविध भाँति पुग्गल खचित, सकल लोक अनिवार ।।३०७।।
जीव द्रव्यास्तिकाय (गाथा २७ से७३)
(सवैया इकतीसा) जैसैं के अंजनचूर संपुट संपूरन मैं,
रीति ठौर कोई नाहिं अंजन घनाई है। तैसैं कर्म लाइक के पुग्गल समूहभया,
लोकाकास भासमान सब” सुहाई है। ऐसें लोकाकास मांहिं आत्मा जहाँ है तहाँ,
पुद्गल समूह रास बनी ही बनाई है। या तैं जीव कर्म दोनौं एकमेक एकै ठौर, जैनी जिनवाणी जानि सांची बात पाई है।।३०८।।
(दोहा) छहौं दरवकरि सरव नभ, व्यापक अति अवगाढ़।
परत्वभावकरि बढ़त नहि, निज-सुभावकरि बाढ़।।३०९।। यहाँ कवि का कहना है कि सूक्ष्म एवं बादर (स्थूल) के भेद से पुद्गल अनेक प्रकार के हैं। सम्पूर्ण लोक में विविध प्रकार के पुद्गल भरे
आगे कहा कि ह्र जैसे कि अंजन की डिब्बे में अंजन ठसाठस भरा है, किंचित् भी जगह खाली नहीं है, उसीप्रकार लोक में पुद्गल समूह भरे हुए हैं। सम्पूर्ण लोकाकास में जहाँ आत्मा है वहीं पुद्गल की राशि विद्यमान हैं। इसलिए जीव व कर्म ह्र दोनों एक ही जगह एकमेक भरे हुए हैं।
इस संदर्भ में गुरुदेव श्रीकानजीस्वामी कहते हैं कि ह्र "तीनों लोक पुद्गल स्कन्धों के द्वारा भरपूर भरे हुए हैं। वे पुद्गल परमाणु अतिसूक्ष्म हैं तथा अतिबादर भी हैं एवं अपरिमित संख्या वाले हैं। और वे परमाणु व स्कंध के भेद से अनेक प्रकार के हैं।
तीनों लोकों में जीव भरे हुए हैं; कोई भी जगह जीवों से खाली नहीं
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